Last Updated: Friday, February 8, 2013, 00:15

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि विशिष्ट व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये तैनात पुलिसकर्मियों को सड़कों पर महिलाओं की सुरक्षा जैसे बेहतर कार्यो में तैनात किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इतने अधिक लोगों को पुलिस की सुरक्षा प्रदान करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि विभिन्न अदालतों के न्यायाधीशों के सुरक्षाकर्मी भी यदि उनसे वापस लेकर सड़कों पर तैनात कर दिए जाएं तो उन्हें भी कोई परेशानी नहीं होगी। न्यायाधीशों ने इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया क्योंकि अनेक राज्यों ने महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों और उन पर हो रहे खर्च का विवरण न्यायालय में पेश नहीं किया था।
शीर्ष अदालत ने इन राजयों को महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के बारे में सोमवार तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए कहा है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य के गृह सचिव को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होना पड़ेगा। न्यायाधीशों ने दिल्ली की मुख्यमंत्री के हाल के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा में व्यापक सुधार की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने कहा था कि दिल्ली में अभी भी महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।
न्यायालय उत्तर प्रदेश में लाल बत्ती की गाड़ियों के दुरुपयोग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। न्यायालय ने 17 जनवरी को इस मामले की सुनवाई के दौरान सांसदों और विधायकों सहित तमाम ऐसे व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने की आलोचना की थी जिन्हें किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है। न्यायालय ने केन्द्र और राज्य सरकारों को सुरक्षा प्राप्त कर रहे व्यक्तियों और इस पर खर्च हो रही धनराशि का विवरण पेश करने का निर्देश दिया था। न्यायाधीशों का कहना था कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उप राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, देश के प्रधान न्यायाधीश, सांविधानिक संस्थाओं के मुखिया और राज्यों में ऐसे ही पदों पर आसीन व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। लेकिन समझ में नहीं आता कि हर खासो आम को लाल बत्ती और सुरक्षा क्यों दी गई है। मुखिया और सरपंच भी लाल बत्ती की गाड़ी में घूमते हैं।
First Published: Thursday, February 7, 2013, 20:31