Last Updated: Sunday, June 24, 2012, 19:06
नई दिल्ली : हरियाणा के मानेसर में अपने चौथे जन्मदिन पर बोरवेल में गिरी नन्ही सी माही को बचाया नहीं जा सका। यह अपनी तरह की पहली घटना नहीं है और सबसे दुखद बात यह है कि देश के कई भागों में अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे बोरवेल हैं, जो किसी के घर का चिराग बुझा सकते हैं। इनकी पहचान कर इन्हें बंद करके ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकार के सदस्य के एम सिन्हा ने कहा कि बोरवेल में बच्चों के गिरने का मामला अलग तरह की घटना है जिससे निपटने के लिए राज्यों को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल का गठन करना चाहिए। देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसे बोरवेल की पहचान करना और इन्हें बंद करना ही इसका समाधान है।
बोरवेल में बच्चों के गिरने और उनकी मौत की बढ़ती घटनाओं से चिंतित उच्चतम न्यायालय ने साल 2009 में राज्यों से ऐसी घटनाओं पर प्रभावी ढंग से लगाम लगाने को कहा था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि, ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए तमाम उपाए किए जाएं। प्रशासन को सतर्क रहना चाहिए और ऐसे बोरवेल को बंद करना चाहिए। क्या राज्य सरकारें इतना नहीं कर सकतीं।
केंद्र सरकार ने भी बोरवेल से जुड़ी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए और सभी राज्यों को इस पर अमल करने का सुझाव दिया।
हरियाणा में मानेसर के समीप एक गांव में 70 फुट गहरे बोरवेल में गिरने से चार साल की बच्ची माही की मौत पहला वाकया नहीं है। बोरवेल में गिरने के कारण प्रति वर्ष कई बच्चों की दुखद मौत के मामले सामने आते रहे हैं।
फरवरी 2007 को मध्यप्रदेश के कटनी में दो वर्षीय बच्चे अमित की 56 फुट के बोरवे में गिरने से मौत हो गई थी। मार्च 2007 में गुजरात के करमाटिया क्षेत्र में 3 वर्षीय बच्ची आरती की मौत हो गई जबकि अप्रैल 2007 में कर्नाटक के रायचुड में नौ वर्षीय संदीप की मौत हो गई। अप्रैल 2007 में ही राजस्थान के बीकानेर में बोरवेल में दो वर्षीय सारिका गिर गई, जबकि इसी दिन गुजरात के माडेली गांव में दो वर्षीय किंजल की बोरवेल में गिरने से मौत हो गई।
जून 2007 में महाराष्ट्र के पुणे में 5 वर्षीय बच्ची की बोरवेल में गिरने से मौत हो गई जबकि इसी महीने राजस्थान में छह वर्षीय सूरज और आंध्रप्रदेश में कार्तिक की मौत हो गई।
मार्च 2008 में आगरा के तेहरगांव में 160 फुट के बोरवेल में गिरने से 3 वर्ष की बंदना की मौत हो गई।
साल 2009 में उज्जैन में आठ वर्षीय अंकित की बोरवेल में गिरने से मौत हो गई। इसी वर्ष जयपुर में पांच वर्षीय महेश की मौत हो गई।
2006 में प्रिंस नामक बच्चे के बोरवेल में गिरने का मामला सबसे अधिक चर्चित रहा था। प्रिंस को 48 घंटे तक चले अभियान के बाद बचा लिया गया था। इसी प्रकार 2009 में जयपुर और दौसा तथा पालनपुर में बोरवेल में गिरे बच्चे को सुरक्षित निकाल लिया गया था।
लेकिन माही इतनी खुशकिस्मत नहीं रही। वह चार दिन पहले बोरवेल में गिर गयी थी। मानसेर के समीप खो गांव में माही 20 जून को अपने चौथे जन्म दिन पर साथियों के साथ खेल रही थी, उसी दौरान अचानक वह बोरवेल में गिर गयी। उसे बचाया नहीं जा सका। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 24, 2012, 19:06