Last Updated: Friday, July 12, 2013, 21:12
नई दिल्ली : सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देश में अंतरराष्ट्रीय अश्लील साइट्स को रोकना मुश्किल है। सरकार ने इस मामले में विभिन्न मंत्रालयों से मशविरा करके समाधान खोजने के लिए कुछ और वक्त मांगा है।
प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने ऐसी साइट्स, विशेषकर बच्चों की अश्लील सामग्री दिखाने वाली साइट्स को अवरुद्ध करने का तरीका खोजने के लिए सरकार को चार सप्ताह का वक्त दे दिया। इससे पहले, न्यायालय ने इतने गंभीर मसले पर इतना अधिक समय लेने के लिए सरकार को आड़े हाथ लिया। इस पर अतिरिक्त सालिसीटर जनरल इन्दिरा जयसिंह ने कहा कि उन्हें जवाब दाखिल करने के लिए कुछ और वक्त चाहिए।
न्यायालय इन्दौर निवासी वकील कमलेश वासवानी की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में कहा गया है कि हालांकि अश्लील वीडियो देखना अपराध नहीं है लेकिन अश्लील साइट्स पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए क्योंकि यह महिलाओं के प्रति अपराध का एक बड़ा कारण है।
वकील विजय पंजवानी के मार्फत दायर याचिका में कहा गया है कि इंटरनेट कानूनों के अभाव में लोग अश्लील वीडियो देखते हैं क्योंकि यह अपराध नहीं है। याचिका के अनुसार बाजार में 20 करोड़ से भी अधिक अश्लील वीडियो क्लिपिंग मुफ्त में उपलब्ध हैं और जिन्हें इंटरनेट या दूसरी वीडियो सीडी के जरिये डाउनलोड किया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि आज के बच्चों को उपलब्ध यौन संबंधी सामग्री कहीं अधिक विस्तृत, हिंसक, बर्बर और हानिकारक है और इसने समूचे समाज के लिये ही खतरा पैदा कर दिया है। इससे भारत में लोक व्यवस्था को भी खतरा हो रहा है। याचिका के अनुसार महिलाओं, लड़कियों औेर बच्चों के प्रति होने वाले अधिकांश अपराध इसी अश्लील सामग्री से प्रेरित होते हैं। इसमें निरंतर हो रहा इजाफा बेहद चिंता का विषय है। यह गंभीर चिंता की बात है कि मासूम बच्चों से बलात्कार हो रहा है।
याचिका में पिछले साल 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 वर्षीय छात्रा से सामूहिक बलात्कार की घटना का भी हवाला दिया गया है। इस वारदात में छह व्यक्तियों ने कथित रूप से सामूहिक बलात्कार के बाद उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया था। इस छात्रा की बाद में मृत्यु हो गयी थी। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की अश्लील सामग्री से ही अपराधियों का दिमाग उस ओर बढ़ता है क्योंकि यौन अपराधियों या बलात्कारियों को इस तरह के यौन उन्माद से तृप्ति ही नहीं मिलती है बल्कि वे अपनी ताकत, बल और नियंत्रण पर भी उत्साहित होते हैं।
याचिका के अनुसार भारत में अश्लील वीडियो और क्लिपिंग के वितरण, निर्माण और एक दूसरे से इसे साझा करने को ही अपराध माना जाता है। याचिका में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता में अश्लीलता, अपहरण, अगवा करना और इससे जुड़े दूसरे अपराधों को ही अपराध माना जाता है जो अश्लील सामग्री और ऐसे वीडियो की समस्या से निबटने के लिये पर्याप्त नहीं है। याचिका में कहा गया है कि अश्लील वीडियो देखना और इसे आपस में साझा करने को भी गैर जमानती और संज्ञेय अपराध बनाया जाना चाहिए। इस याचिका पर न्यायालय ने 15 अप्रैल को सरकार को नोटिस जारी करके उससे जवाब मांगा था। (एजेंसी)
First Published: Friday, July 12, 2013, 21:12