Last Updated: Sunday, September 22, 2013, 15:30
नई दिल्ली : यूजीसी के सदस्य पद से हटाये जाने के फैसले को दुर्भावना से प्रेरित करार देते हुए योगेन्द्र यादव ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से दलगत राजनीति के स्वरूप में बदलाव आया है। इस निर्णय से यह संदेश गया है कि अगर कोई मंत्रालय के क्रियाकलापों से असहमत होगा तब उसे बाहर निकाल दिया जायेगा। योगेन्द्र ने कहा कि यह फैसला नये तरह का चलन स्थापित करेगा और स्वायत्त निकायों को स्वतंत्र तरीके से कामकाज करने से रोकेगा।
आम आदमी पार्टी के सदस्य ने कहा, स्वतंत्रता के बाद जाने माने बौद्ध शिक्षाविद आचार्य नरेन्द्र देव को दो विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था जबकि वे उस समय विपक्षी सोशलिस्ट पार्टी के नेता थे। उस समय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसके लिए नरेन्द्र देव को तैयार किया था। उन्होंने कहा, तब से अब तक दलगत राजनीति के स्वरूप में काफी बदलाव आया है लेकिन मेरा मानना है कि उनकी (नेहरू) विरासत के उत्तराधिकारियों को इसे खत्म करने का काम नहीं करना चाहिए। योगेन्द्र ने कहा कि इससे ऐसा संदेश जायेगा कि कोई भी स्वतंत्र सदस्य जो किसी स्वायत्त निकाय में मंत्रालय के क्रियाकलापों से असहमत होगा, उसे बाहर निकाल दिया जायेगा।
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले कुछ समय से वह आयोग की कई बैठकों में कामकाज पर असहमति व्यक्त कर चुके थे जिसमें 11 मार्च 2013 को विदेशी संस्थाओं से समझौते की न्यूनतम पात्रता का विषय शामिल है। योगेन्द्र ने कहा कि उन्होंने शिक्षकों की नियुक्ति की पात्रता के संबंध में यूजीसी के नियमन में संशोधन के मंत्रालय के प्रस्ताव से भी असहमति व्यक्त की थी। साथ ही दिल्ली विश्वविद्यालय समेत केंद्रीय विश्वविद्यालय में बड़ी संख्या में रिक्तियों के विषय को भी उठाया था। उन्होंने कहा कि यह दुर्भावना से प्रेरित फैसला है।
योगेंद्र यादव को कुछ दिन पहले विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सदस्य पद से बख्रास्त कर दिया गया था। सरकार की दलील है कि योगेंद्र के यूजीसी सदस्य बने रहने से भविष्य में उच्च शिक्षा की इस सर्वोच्च संस्था का राजनीतिकरण होने की आशंका है। हालांकि, कश्मीर पर पूर्व वार्ताकार एम एम अंसारी ने कहा कि राजनीतिक संबद्धता किसी सदस्य को यूजीसी की सदस्यता से हटाने का आधार नहीं है। योगेन्द्र भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में प्रभावी ढंग से जुड़े थे, उन्हें मंत्रालय एवं आयोग में कथित घोटालों की जानकारी थी।
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब दिल्ली एवं अन्य स्थानों पर विधानसभा चुनाव होने वाले थे तब योगेन्द्र सरकार के लिए अनुपयुक्त व्यक्ति हो गए थे। उन्हें आधारहीन बातों पर हटाया गया है। इसकी जांच की जानी चाहिए ताकि सचाई सामने आ सके। यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. यशपाल ने उन्हें कर्मठ व्यक्ति व्यक्ति बताया और कहा है कि सरकार का यह फैसला उन्हें अच्छा नहीं लगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से योगेंद्र को 4 सितंबर को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 2011 में नियुक्ति के वक्त रही उनकी साख और विश्वसनीयता में अब काफी बदलाव आ चुका है।
अपने आदेश में मंत्रालय ने कहा, यूजीसी (सदस्यों की अयोग्यता, सेवानिवृति एवं सेवा शर्ते) नियम 1992 के नियम 6 के तहत मिले अधिकारों का इस्तेमाल कर केंद्र सरकार तत्काल प्रभाव से योगेंद्र यादव को यूजीसी सदस्य के पद से सेवानिवृत करती है। आदेश में कहा गया है कि ‘आप’ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और यूजीसी में सदस्य के तौर पर उनके बने रहने से हितों का टकराव पैदा हो गया है और इससे खतरनाक परंपरा बन सकती है जिससे भविष्य में यूजीसी एवं इसके अकादमिक निर्णय लेने की प्रक्रिया का राजनीतिकरण होने की आशंका है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 22, 2013, 15:30