Last Updated: Monday, June 25, 2012, 16:44

नई दिल्ली : अगले माह होने जा रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव में प्रणब मुखर्जी के मुकाबले पीए संगमा की उम्मीदवारी का समर्थन किए जाने के भाजपा के फैसले की पैरवी करते हुए लालकृष्ण आडवाणी ने आज कहा कि किसी एक प्रत्याशी पर सर्वसम्मति बनाने की जिम्मेदारी सत्तारूढ़ गठबंधन संप्रग की थी, लेकिन उसकी ओर से ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया।
आडवाणी ने कहा कि राजनीतिक जमात में इन दिनों यह कहा जाना फैशन सा हो गया है कि शीर्ष संवैधानिक पद के लिए उम्मीदवार सरकार और विपक्ष के बीच सामंजस्य से सर्वसम्मति से होना चाहिए। राजग के कार्यकारी अध्यक्ष ने अपनी नए ब्लाग में लिखा कि भाजपा में हम पर अक्सर यह सवाल दागा जाता है कि क्या कांग्रेस के मुखर्जी के खिलाफ दो मुख्यमंत्रियों द्वारा समर्थित संगमा को समर्थन दिया जाना कुछ अनुचित नहीं है? मैं मानता हूं कि इस प्रश्न का उत्तर पूरी तरह सत्तारूढ़ दल के आचरण पर निर्भर करता है।
सत्तारूढ़ दल पर सर्वसम्मति बनाने का प्रयास नहीं करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से मुखर्जी की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें फोन करके समर्थन का आग्रह किया। आडवाणी ने कहा कि प्रधानमंत्री को मेरा जवाब था: ‘आप अब केवल हमें सूचना दे रहे हैं, क्या यह बेहतर नहीं होता कि इस घोषणा से पहले आपने हमसे सलाह मश्विरा किया होता?’ उनका (प्रधानमंत्री) जवाब था: ‘ठीक है, लेकिन सुधार के लिए ज्यादा देर नहीं हुई है।
आडवाणी ने कहा कि प्रधानमंत्री के फोन के कुछ ही देर बाद स्वयं प्रणब दा का फोन आया। उन्होंने उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने की जानकारी तो दी लेकिन समर्थन नहीं मांगा। उन्होंने कहा कि मैं तथ्यों के रिकार्ड को सामने रखना चाहता हूं। राष्ट्रपति के लिए अब तक हुए 13 चुनावों में से आपातकाल के कटु अनुभवों से गुजरने के बाद 1977 का चुनाव ही अकेला ऐसा निर्वाचन था, जिसमें तब के सत्तारूढ़ दल जनता पार्टी के प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध चुने गए। भाजपा नेता ने कहा कि उक्त चुनाव के अलावा राष्ट्रपति पद के लिए शेष सभी को चुनाव का सामना करना पड़ा। यहां तक कि सत्तारूढ़ दल के डा राजेन्द्र प्रसाद, डा राधाकृष्णन या डा ज़ाकिर हुसैन जैसे कद्दावर और श्रेष्ठ उम्मीदवारों के खिलाफ भी उम्मीदवार उतारे गए और उन्हें चुनाव का सामना करना पड़ा।
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए सर्वसम्मति का प्रयास नहीं करने के संबंध में संप्रग पर कटाक्ष करते हुए आडवाणी ने कहा कि आजादी के बाद से कई दशकों तक राष्ट्रपति चुनाव के निर्वाचक मंडल में कांग्रेस का ऐसा वर्चस्व रहा कि शायद इसी कारण से उसने कभी भी विपक्ष से सलाह मश्विरा करने की नहीं सोची। आडवाणी ने कहा कि कांग्रेस के इस आचरण के खिलाफ 2002 में सत्तारूढ़ राजग ने डा एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के बारे में सोचा और अटल बिहारी वाजपेयी ने सोनिया गांधी और सपा के मुलायम सिंह से बात करके उन्हें साथ लिया। उन्होंने कहा कि राजग के प्रयास से कलाम के नाम पर अधिकतर दल राजी हो गए। लेकिन वाम मोर्चे ने लक्ष्मी सहगल को कलाम के विरूद्ध चुनाव लड़ाया।
भाजपा नेता ने कहा कि 1969 में हुआ राष्ट्रपति चुनाव सबसे विचित्र था जब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीवी गिरी को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतार कर अपनी ही पार्टी कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को अंत:करण की आवाज के नाम पर हरवा दिया। (एजेंसी)
First Published: Monday, June 25, 2012, 16:44