Last Updated: Friday, June 15, 2012, 21:11

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति आत्मरक्षा के अधिकार के तहत किसी व्यक्ति की जान उसी स्थिति में ले सकता है जब हमलावर से उसे अपनी जान का समुचित खतरा हो। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने व्यक्तिगत रक्षा के अधिकार का इस्तेमाल गलत काम करने वाले व्यक्ति से बचाव के लिए उस समय तक नहीं किया जा सकता जब तक ऐसे व्यक्ति के कृत्य से गंभीर चोट लगने या जान जाने का खतरा नहीं हो।
न्यायाधीशों ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 98 और धारा 100 से 106 तक में प्रदत्त यह अधिकार धारा 99 से नियंóि।त है। व्यक्तिगत रक्षा के अधिकार के प्रयास में दूसरे व्यक्ति की हत्या के मामले में अभियुक्त को उन परिस्थितियों को स्पष्ट करना होगा जिनके कारण उसे अपनी जान जाने या गंभीर रूप से जख्मी होने की आशंका थी।
न्यायालय ने हत्या के मामले में बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अभियुक्त अर्जुन की अपील का निबटारा करते हुए व्यक्तिगत रक्षा के अधिकार के बारे में स्थिति स्पष्ट की। न्यायालय ने सारे तथ्यों के मद्देनजर अभियुक्त की उम्र कैद की सजा को घटाकर दस साल की कैद में तब्दील कर दिया।
अजरुन को अहमदनगर जिले में जगन्नाथ रामभाउ की श्रीसाठ की हत्या करने और उसकी पत्नी मुक्ताबाई को गंभीर रूप से जख्मी करने के जुर्म में सत्र अदालत ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी। उच्च न्यायालय ने इस सजा की पुष्टि कर दी थी। अजरुन ने इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। (एजेंसी)
First Published: Friday, June 15, 2012, 21:11