Last Updated: Thursday, January 10, 2013, 21:09
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज केन्द्र सरकार से सवाल किया कि आपराधिक पृष्ठभूमि के मामले में सांसदों और विधायकों के साथ अलग बर्ताव क्यों होता है।
न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्र की खंडपीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ, नौ और 11-ए निरस्त करने के लिए दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की। न्यायाधीशों ने केन्द्र सरकार से जानना चाहा है, ‘क्यों उन्हें (सांसदों और विधायकों) विशेष वर्ग के रूप में माना जाए? उनके लिए क्यों कानून अलग हो? क्या संसद अपने सदस्यों के लिए अलग और साधारण नागरिकों के लिए दूसरा कानून बना सकती है?’
यह जनहित याचिका अधिवक्ता लिली थॉमस ने दायर कर रखी है। याचिका में कहा गया है कि जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ, नौ और 11-ए के प्रावधानों से संविधान के अनुच्छेद 84, 173 और 326 का उल्लंघन हो सकता है क्योंकि इनके तहत अपराधियों के बतौर मतदाता पंजीकृत होने या सांसद और विधायक बनने पर प्रतिबंध है।
जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा आठ, नौ और 11-ए के तहत सांसद या विधायक को अदालत द्वारा दोषी ठहराये जाने के बावजूद यदि उसकी अपील या पुनरीक्षण याचिका लंबित हो तो वह अपने पद पर बना रह सकता है। यही नहीं, ये प्रावधान दोषी ठहराये जाने या जेल से रिहाई के छह साल बाद ऐसे व्यक्ति को मतदाता के रूप में पंजीकृत होने और चुनाव में उम्मीदवार बनने की अनुमति भी देते हैं।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘यदि सांसद के रूप में उनके काम के लिए कोई कानून बनाया जाता है तो समझ में आता है लेकिन अन्य मामलों के लिए कोई विशेष कानून नहीं होना चाहिए।’ लिली थॉमस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन ने कहा कि 274 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं और सरकार इस पर अंकुश के लिए कुछ नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 या इसमें कहीं और किसी प्रावधान के बगैर इस तरह की अयोग्यता के प्रति किसी प्रकार की नरमी नहीं बरती जा सकती है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, January 10, 2013, 21:05