Last Updated: Thursday, February 2, 2012, 13:06
बेंगलूर : दो शीर्ष वैज्ञानिकों ने एंट्रिक्स-देवास करार को लेकर इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर और तीन अन्य वैज्ञानिकों पर पाबंदी लगाने की गुरुवार को आलोचना की तथा मांग की इस मुद्दे पर गठित की गई दो विशेषज्ञ समितियों की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
दोनों शीर्ष वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि वैज्ञानिकों को समुचित सुनवाई का मौका दिए बिना उनके खिलाफ इस तरह कार्रवाई करने से इसरो में निर्णय करने की प्रक्रिया और देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर प्रभाव पड़ेगा। इन वैज्ञानिकों के खिलाफ की गई कार्रवाई बेतुका है।
इसरो के पूर्व प्रमुख प्रो. यूआर राव ने कहा कि लोकतंत्र में यह हास्यास्पद है। हम किस तरह का लोकतंत्र चलाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि कुछ गलत हुआ है तो आगे बढ़िए और कार्रवाई करिए। आपने उन्हें अपना बचाव करने के लिए समय नहीं दिया, किस परिस्थिति में वह सहमत हुए (करार के लिए), हम देश कैसे चला रहे हैं। उन्होंने किस आधार पर कार्रवाई की। वहीं, प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक एमआर श्रीनिवासन ने पूछा, क्या ये वैज्ञानिक ही पूरी तरह से जिम्मेदार है। क्या अन्य लोग भी है। निर्णय करने की प्रक्रिया में कौन अन्य लोग हैं। क्या उनकी जिम्मेदारी भी तय की गई है।
परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्रीवास्तव ने कहा कि केवल वैज्ञानिकों के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों। अन्य के खिलाफ क्यों नहीं। राव ने इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन के उस बयान का स्वागत किया, जिसमें दो रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की अंतरिक्ष एजेंसी की मंशा जाहिर की गई है। इन्हीं रिपोर्ट के आधार पर चारों वैज्ञानिकों पर किसी भी सरकारी नौकरी को हासिल करने पर पाबंदी लगाई गई है। उन्होंने कहा कि दो समितियां क्यों। दो रिपोर्ट क्यों। उन्होंने ध्यान दिलाया कि पांच सदस्यीय दल में केवल प्रत्यूष सिन्हा और राधाकृष्णन का नाम ही सार्वजनिक क्षेत्र में सामने आया है।
उन्होंने सवाल किया, ‘तीन अन्य कौन हैं।’ राव ने यह भी सवाल किया कि इन दो समितियों में क्या सही तरह के लोग हैं। उन्होंने ध्यान दिलाया कि जिस प्रौद्योगिकी के संबंध में विचार किया जाना था वह कठिन और जटिल है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष संचार लैड लाइन संचार से बिल्कुल भिन्न होता है।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, February 2, 2012, 18:36