कश्मीर ने चाहा तो फिर आऊंगा : जुबिन मेहता

कश्मीर ने चाहा तो फिर आऊंगा : जुबिन मेहता

कश्मीर ने चाहा तो फिर आऊंगा : जुबिन मेहताश्रीनगर : अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त संगीतकार जुबिन मेहता ने आज कहा कि अगर घाटी के लोग चाहें तो उन्हें कश्मीर में एक और कंसर्ट के लिए वापस आने में खुशी होगी। डल झील के किनारे शालीमार बाग में अपने संगीत से कश्मीर के लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाले मेहता ने कहा, ‘अगर मुझे बुलाया जाए, अगर कश्मीर मुझे चाहता है, मैं वापस आऊंगा।’ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ कई मुलाकात में मेहता ने कहा कि एहसास-ए-कश्मीर कार्यक्रम उनकी उम्मीदों से कहीं अधिक सफल रहा।

उन्होंने कहा, ‘यह उम्मीद से कहीं ज्यादा था। यह एक ऐसा मौका बन गया, जिसपर हमें गर्व होगा। हमें वापस आने दो अगली बार शायद हम कुछ अलग कर सकें।’ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की कुछ बेहद लोकप्रिय धुनें बजाने वाले महान संगीतकार ने अपने आलोचकों और विरोधियों की तरफ पेशकदमी करते हुए कहा कि वह उनके दोस्त हैं।

मेहता ने कट्टरपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता का जिक्र करते हुए कहा, ‘गिलानी साहब हम तो आपके दोस्त हैं। आप इसपर भरोसा नहीं करते। मैं चाहता हूं कि हमारे विरोधी यहां आए होते और संगीत का मजा लेते।’ उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ पारसी नहीं हूं, मैं एक कश्मीरी भी हूं।’ मेहता ने कहा कि वह और उनका आर्केस्ट्रा राजनीति में नहीं है और उनका प्रयास है कि संगीत के माध्यम से कश्मीर के जख्मों पर मरहम लगाया जाए।

उन्होंने कहा, ‘हम राजनीतिक नहीं हैं। हम सीमाएं तो नहीं बदल सकते, लेकिन मरहम तो लगा सकते हैं। राजनीतिकों ने 60 वर्ष तक कोशिश की। मुझे नहीं लगता कि उन्हें ज्यादा कुछ मिला। आइए दूसरा रास्ता पकड़ें, एक आध्यात्मिक रास्ता और मुझे लगता है कि कल उस प्रक्रिया की शुरूआत हुई है क्योंकि हिंदु और मुसलमान पूरी अपनाइयत से एक साथ बैठे थे। मरहम और अपनाइयत दो महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनके लिए हम तरस रहे हैं।’

मुंबई में जन्मे 77 वर्ष के संगीतकार ने स्वीकार किया कि कंसर्ट से पहले उनके खिलाफ कुछ आरोप लगाए गए, जिनसे वह आहत हुए। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनके विरोधी सरासर गलत बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘कंसर्ट से पहले की रात मैंने टेलीविजन पर एक परिचर्चा देखी, जिसमें 12 लोगों ने भाग लिया। उनमें से नौ लोग इस कंसर्ट के खिलाफ थे और तीन इसका समर्थन कर रहे थे। इसके खिलाफ बोलने वाले नौ लोगों की बातों से मुझे सच में चोट पहुंची। ये लोग पूरी तरह गलत बोल रहे थे। उन्होंने ऐसी बातें कहीं, जिनके बारे में वह कुछ नहीं जानते थे। उन्हें किसी ने इस बारे में जानकारी नहीं दी।’

मेहता ने कहा, ‘इस कंसर्ट के आयोजन के पीछे मेरा कोई छिपा मकसद नहीं था। मैं पिछले वर्ष जर्मन दूतावास में देखे गए एक सपने की अभिव्यक्ति चाहता था, जिसे राजदूत माइकल स्टीनर ने एक चुनौती की तरह लिया। मैं तो कश्मीरी राजनीति का ताना बाना भी नहीं जानता।’ मेहता की एक ख्वाहिश है, जो शायद कभी पूरी नहीं होगी।

उन्होंने कहा, ‘एक भारतीय होने के नाते मैं चाहता हूं कि यहां पहाड़ की चोटी पर मेरा घर हो।’ लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इस ख्वाहिश के पूरा न हो पाने की वजह बताते हुए कहा, ‘मुझे इस बात का गर्व है कि भारत सरकार मुझे एक भारतीय के तौर पर यहां जायदाद खरीदने की इजाजत नहीं देती। मुझे उन लोगों से ईर्ष्या होती है, जो डल झील के किनारे रहते हैं। मैं इस बात के लिए सरकार का सम्मान करता हूं कि वह यहां बस्तियां बसाने की इजाजत नहीं देती ताकि कश्मीर की खूबसूरती पर कोई आंच न आए।’ (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 8, 2013, 15:58

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