Last Updated: Sunday, May 5, 2013, 11:21
नई दिल्ली : कारगिल युद्ध के नायक रहे मेजर डी पी सिंह ने गंभीर रूप से जख्मी होने और दाहिना पैर गंवाने के बावजूद जिन्दगी से हार नहीं मानी। आज वह भारत के अग्रणी ब्लेड रनर (कृत्रिम पैरों की मदद से दौडने वाले धावक) हैं। मेजर सिंह का कहना है कि बचपन से अब तक उन्हें जब जब तिरस्कार का सामना करना पड़ा, उनके हौंसले और मुश्किलों से हार न मानने का जज्बा मजबूत होता चला गया।
मेजर सिंह ने कहा, ‘‘कई बार ऐसे मौके आये, जब दौडते वक्त पीड़ा हुई। शरीर में इतने जख्म थे कि दौड़ते से उनसे अकसर खून रिसने लगता था लेकिन मैंने हार नहीं मानी और पहले केवल चला, फिर तेज चला और फिर दौड़ने लगा ।’’ लगातार तीन बार मैराथन दौड़ चुके मेजर सिंह ने कहा कि उन्हें सेना ने कृत्रिम पैर दिलाये, जिन्हें हम ‘ब्लेड प्रोस्थेसिस’ कहते हैं । उन्होंने बताया कि इस कृत्रिम पैर का निर्माण भारत में नहीं होता और ये पश्चिमी देशों से मंगाने पडते हैं । ऐसे एक पैर की कीमत साढ़े चार लाख रूपये है । उन्होंने कहा कि इन पैरों की इतनी अधिक कीमत देखते हुए सरकार को इस तरह की प्रौद्योगिकी और डिजाइन वाले पैर भारत में बनाने पर गौर करना चाहिए । इस संबंध में उन्होंने सरकार का दरवाजा भी खटखटाया है।
दो बार लिम्का बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज करा चुके मेजर सिंह को विकलांग, शारीरिक रूप से अक्षम या अशक्त कहे जाने पर सख्त आपत्ति है। वह खुद को और अपने जैसे अन्य लोगों को ‘‘चैलेन्जर’’ (चुनौती देने वाला) कहलाना पसंद करते हैं ।
मेजर सिंह ऐसे लोगों के लिए एक संस्था चला रहे हैं .. ‘‘दि चैलेन्जिंग वन्स’’ और किसी वजह से पैर गंवा देने वाले लोगों को कृत्रिम अंगों के जरिए धावक बनने की प्रेरणा दे रहे हैं। वह जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति से जूझने को तैयार हैं और उसे चुनौती के रूप में लेते हैं। उन्होंने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान भी वह पडोसी मुल्क के सैनिकों के मोर्टार हमले में बुरी तरह जख्मी हुए थे। एक गोला ठीक उनसे चार-पांच फीट की दूरी पर गिरा और उसके र्छे उनके पूरे शरीर में धंस गये। शरीर से काफी खून बह गया और उनके साथी उन्हें अस्पताल ले गये।
मेजर सिंह ने बताया कि अस्पताल में एक डाक्टर ने तो यहां तक कह दिया था कि ये मर चुका है लेकिन एक अन्य डाक्टर ने ‘‘मेरे भीतर जिन्दगी देखी और फिर इलाज शुरू हो गया।’’ लगातार कई महीने आईसीयू (इन्टेंसिव केयर यूनिट) में रहने सहित लगभग साल भर अस्पताल में पड़ा रहा।
उन्होंने कहा कि अस्पताल से निकलने के बाद से लेकर आज ब्लेड रनर बनने तक के सफर में कई कठिन पडाव आये, लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति के जरिए कदम दर कदम वह आगे बढ़ते गये और हर चुनौती का सामना किया। (एजेंसी)
First Published: Sunday, May 5, 2013, 11:21