Last Updated: Thursday, August 29, 2013, 19:51

नई दिल्ली : भूमि अधिग्रहण के लिए लोकसभा में लाए गए विधेयक को गुरुवार को आधा अधूरा करार देते हुए भाजपा ने मांग की कि किसी भी सूरत में कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण किसानों की मंजूरी के बिना नहीं किया जाना चाहिए।
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश द्वारा पेश किए गए ‘भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन विधेयक 2011’ पर चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने कहा कि सरकार जल्दबाजी में एक ऐसा विधेयक लेकर आयी है जो कई मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक से भू स्वामियों की समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ेंगी।
राजनाथ सिंह ने कहा कि हिंदुस्तान में भू स्वामियों के लिए भूमि, जमीन का एक टुकड़ा भर नहीं होती बल्कि इस जमीन से उनका भावनात्मक और सांस्कृतिक लगाव भी होता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि हिंदुस्तान में साढ़े छह करोड़ किसान विस्थापित हुए हैं और इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मुद्दा कितना महत्वपूर्ण है।
1894 के बाद से इस विधेयक में 1962, 1967 और 1984 में किए गए संशोधनों का जिक्र करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि संप्रग सरकार के साढ़े नौ साल का कार्यकाल गुजर चुका है और सरकार इतनी देरी करके लायी भी तो एक आधा अधूरा विधेयक। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में विवाद का विषय रहा है लेकिन सरकार ने इस विधेयक में भी ‘लोक हित’ की आड़ में इस क्षेत्र के लिए रास्ता निकाल लिया है।
भाजपा अध्यक्ष ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ‘तात्कालिक जरूरत’ के तहत तीन दिन की सूचना पर भूमि अधिग्रहण करने की जो व्यवस्था विधेयक में की गई है। यह सरासर अन्याय है और सरकार को ऐसी स्थिति में भू स्वामियों को अतिरिक्त लाभ देने की व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने इससे संबंधित उपबंध 38 को समाप्त किए जाने की मांग की। उन्होंने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया से पूर्व ही इसके ‘सामाजिक और पर्यावरण प्रभाव का आकलन’ समयबद्ध तरीके से किए जाने की मांग की जिसका विधेयक में अधिग्रहण के बाद प्रावधान किया गया है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, August 29, 2013, 19:51