Last Updated: Thursday, March 22, 2012, 16:40
नई दिल्ली : केंद्र ने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने की सिफारिश करते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि देश में समलैंगिकता विरोधी कानून ब्रिटिश उपनिवेदशवाद की परिणति है और इसके पहले भारतीय समाज समलैंगिकता के प्रति अधिक उदार था।
अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने कहा, ‘ऐसा प्रकट होता है कि भारत में धारा 377 (समलैंगिक संबंध को अपराध बनाना) लागू करने में वर्तमान भारतीय मूल्य और परंपराएं प्रतिबिंबित नहीं होतीं। इसकी बजाय इसे भारतीय समाज पर उपनिवेशवादियों के नैतिक मूल्यों के चलते थोपा गया था।’ वाहनवती ने न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय के समक्ष पेश होते हुए कहा कि सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में कोई कानूनी गलती नहीं मिली है जिसने समलैंगिक संबंधों को वैध ठहराने के साथ ही उसके औचित्य को स्वीकार किया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्ष 2009 में समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया जो कि भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अपराध था और इसमें आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान था। अदालत ने कहा था कि दो वयस्कों के बीच उनकी मर्जी से निजी स्थान पर बनाया गया संबंध अपराध नहीं होगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता बी पी सिंघल ने अदालत के फैसले को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी कि ऐसे कृत्य अवैध, अनैतिक और भारतीय संस्कृति सदाचार के विरुद्ध है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, उत्कल क्रिश्चियन काउंसिल, और एपोसटोलिक चर्चेस अलायंस ने भी फैसले को चुनौती दी है। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग, तमिलनाडु मुस्लिम मुन्न कषगम, ज्योतिषिसुरेश कुमार कौशल और योग गुरु रामदेव ने भी फैसले का विरोध किया है।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, March 22, 2012, 22:10