Last Updated: Monday, September 23, 2013, 22:40
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया जिसमें 1992 से कोयला खदानों को चिन्हित करने और निजी कंपनियों को उनके आबंटन के संबंध में विभिन्न घटनाक्रम का विवरण दिया गया है।
केन्द्र सरकार ने अनेक दस्तावेजों के साथ दाखिल 24 पेज के हलफनामे में कहा है कि कोयला खदानों के संबंध में कोल इंडिया लि. राज्य सरकार की पट्टेदार है जो 1973 में राष्ट्रीय संसाधनों के राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला खदान प्राधिकरण में निहित हैं।
हलफनामे के अनुसार कोयला खदानों को चिन्हित करने का बुनियादी काम सेन्ट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लि. करती है लेकिन सीमित खनन के लिये कोयला खदानों का आबंटन कोल इंडिया करती है।
हलफनामे के अनुसार इन परिस्थितियों में यह स्पष्ट है कि बुनियादी चिह्नीकरण का काम सीएमपीडीआई करती है लेकिन अंतिम निर्णय कोल इंडिया लि को करना होता है। केन्द्र ने कहा है कि 1996 में सीमित खनन के लिये 172 खदानों की पहचान की गयी थी जिन्हें कोल इंडिया द्वारा अपने हाथ में लेने का प्रस्ताव नहीं था। केन्द्र के अनुसार कोल इंडिया के पास 123 अरब टन कोयले का भूगर्भीय भंडार उपलब्ध है।
सरकार ने शीर्ष अदालत के सवालों के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया है। न्यायालय ने सुनवाई की पिछली तारीख पर केन्द्र से जानना चाहा था कि कोल इंडिया को आबंटित कोयला खदाने किस तरह से निजी कंपनियों को आबंटित की गयीं।
हलफनामे में कहा गया है कि निजी कंपनियों को कोयला खदान आबंटित करने के लिये 1993 में शुरू हुयी सरकार की नीति की प्रगति से संबंधित कुछ दस्तावेज उपलब्ध कराने में सरकार असफल हो गयी है।
न्यायालय ने कहा था कि इस मामले के लिये यह ‘महत्वपूर्ण’ मसला है और सरकार के स्पष्टीकरण के बगैर इसमें आगे नहीं बढ़ा जा सकता है। न्यायालय ने अटार्नी जनरल से कोयला खदानों की पहचान करने संबंधी पुस्तिका और सरकार द्वारा कंपनियों से आवेदन स्वीकार करने की प्रक्रिया के बारे में भी जानकारी मांगी थी। (एजेंसी)
First Published: Monday, September 23, 2013, 22:40