Last Updated: Tuesday, March 26, 2013, 15:31

चेन्नई : श्रीलंकाई नौसैनिकों द्वारा भारतीय मछुआरों पर हमले की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए तमिलनाडु सरकार ने मंगलवार को केंद्र से कहा कि इस पर काबू के लिए वह राजनयिक पहल सके। इसके साथ ही राज्य ने अनुरोध किया कि 1974 के उस समझौते को समाप्त कर दिया जाए जिसके तहत कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था।
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने विधानसभा में एक ध्यानाकषर्ण प्रस्ताव पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अगर संप्रग सरकार मांग को पूरा करने में नाकाम रहती है तो उनकी सरकार कानूनी विकल्प पर विचार करेगी।
उन्होंने हमले जारी रहने की निंदा की और कहा कि कच्चातीवु दे दिए जाने के कारण श्रीलंकाई नौसैनिकों की ओर से भारतीय मछुआरों पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका पारंपरिक अधिकारों से जुड़े समझौते के विभिन्न प्रावधानों का पालन नहीं कर रहा है।
‘‘बेरूबारी’’ मामले में उच्चतम न्यायालय के 1960 के फैसले का जिक्र करते हुए जयललिता ने कहा कि बेरूबारी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को दिए जाने के खिलाफ उस समय की पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था कि संवैधानिक संशोधनों के अलावा संसद के दोनों सदनों से मंजूरी के बाद ही ऐसे हस्तांतरण हो सकते हैं।
जयललिता ने आरोप लगाया कि द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि ने मुख्यमंत्री के रूप में 1974 में इसका अनुसरण किया होता तो कच्चातीवु श्रीलंका को नहीं सौंपा जाता।
मुख्यमंत्री ने कहा कि 2008 में उन्होंने 1974 के समझौते के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस मामले में बाद में राज्य के राजस्व विभाग को पक्ष बनाया गया। उन्होंने कहा कि जब भी मछुआरों को गिरफ्तार किया गया है, उन्होंने यह मामला केंद्र के समक्ष उठाया और पिछले एक महीने में चार बार हमले होने की खबर है।
जयललिता ने कहा कि केंद्र को इन हमलों की जोरदार निंदा करनी चाहिए और ऐसी घटनाओं पर रोक के लिए राजनयिक पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नयी दिल्ली में श्रीलंकाई दूत को समन कर हमलों के लिए विरोध दर्ज कराना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत को तत्काल समझौता समाप्त कर देना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर उच्चतम न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान मजबूत दलीलें पेश की जाएंगी। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, March 26, 2013, 15:31