Last Updated: Thursday, May 9, 2013, 22:31
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट का बहुत महत्व है और उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी भी मसले पर यह अंतिम सत्य नहीं हो सकता है क्योंकि इसकी भी संसद में समीक्षा होती है।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने केयर्न-वेदांता समझौते पर नियंत्रक
एवं महालेखा परीक्षक का दृष्टिकोण अस्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि यह
‘तथ्यात्मक और कानूनी दृष्टि से गलत है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है।’ न्यायाधीशों ने कहा कि
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पर हमेशा ही संसद में बहस होती है और यह भी संभव है कि लोक
लेखा समिति रिपोर्ट पर आपत्तियों को स्वीकार करे या उन्हें अस्वीकार कर दे।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘कैग की रिपोर्ट पर हमेशा संसद में बहस होती है और यह भी संभव है कि लोक लेखा
समिति इस रिपोर्ट पर मंत्रालय की आपत्तियों को स्वीकार कर ले या फिर कैग की रिपोर्ट अस्वीकार कर दे।
इसमें कोई विवाद नहीं है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एक स्वतंत्र सांविधानिक संस्था है। लेकिन यह
संसद को निर्णय करना होता है कि रिपोर्ट मिलने के बाद इस पर क्या टिप्पणी हो।’
न्यायाधीशों ने कैग के कामकाज से संबंधित विभिन्न प्रावधानों का विश्लेषण किया और कहा, ‘हमें अनेक ऐसे दृष्टांत मिले हैं जिनमें कैग की रिपोर्ट को पूरी तरह सच मानते हुये उस पर बहुत अधिक भरोसा किया गया है।’ कोयला खदान आवंटन और 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन मामलों में राजस्व के अनुमानित नुकसान के बारे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की हाल की रिपोर्ट से उठे विवाद के मद्देनजर न्यायालय की ये टिप्पणियां काफी महत्वपूर्ण है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, May 9, 2013, 22:31