Last Updated: Tuesday, March 12, 2013, 23:32

नई दिल्ली : बहुचर्चित कोयला खान आबंटन घोटाले की जांच को लेकर आज उच्चतम न्यायालय में केन्द्रीय जांच ब्यूरो और केन्द्र सरकार आपस में ही उलझ गये। न्यायालय के समक्ष जांच एजेन्सी ने पहली संप्रग सरकार के दौरान कोयला खानों के आबंटन में अनियमितताओं की ओर उंगली उठायी जबकि सरकार ने जांच एजेंसी के निष्कर्षों का जोरदार प्रतिवाद किया।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सीलबंद लिफाफे में पेश रिपोर्ट के अवलोकन के बाद केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निदेशक को निर्देश दिया कि वह कोयला खानों के आबंटन प्रकरण की जांच में खुद को राजनीतिक दबावों से परे रखे।
सीबीआई द्वारा इस मामले में पेश प्रगति रिपोर्ट में जांच एजेन्सी ने कहा है कि कि 2006 से 2009 के दौरान कंपनियों की पृष्ठभूमि की जांच पड़ताल के बगैर ही कोयला ब्लाकों के आबंटन किये गए। आरोप है कि इन कंपनियों ने अपने बारे में कथित रूप से गलत तथ्य पेश किये थे और कोयला मंत्रालय ने उन्हें कोयला खानों के आबंटन के बारे में कोई तर्कसंगत जवाब भी नहीं दिया है।
न्यायाधीशों ने इसका अवलोकन करने के बाद सीबीआई के निर्देशक को इस जांच से संबंधित जानकारी ‘मंत्रियों के साथ’ साझा नहीं करने की हिदायत दी। न्यायाधीशों ने कहा कि पहली नजर में इस रिपोर्ट में अनियमित्ताओं का आरोप है। अटार्नी जनरल गुलाम ई वाहनवती ने जांच एजेन्सी के इस निष्कर्ष का जोरदार प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा, ‘‘सीबीआई का निष्कर्ष इस मामले में अंतिम नहीं हैं।’’ अटार्नी जनरल ने स्पष्ट किया कि जांच एजेन्सी की जांच से सरकार को कोई परेशानी नहीं है। उन्होंने न्यायालय से जांच रिपोर्ट के कुछ अंश मुहैया कराने का अनुरोध किया जिस पर वह जवाब देंगे।
वाहनवती ने कहा, ‘‘मैं जांच से पहले इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता। मुझे इससे कोई परेशानी नहीं है। सीबीआई को आबंटन की जांच करने दी जाये।’’ इस पर न्यायाधीधों ने कहा कि सरकार को बहुत सावधानी से बयान देना चाहिए क्योंकि इससे कोयला ब्लाक आबंटन मामले की सीबीआई जांच प्रभावित हो सकती है।
प्रगति रिपोर्ट के अंश पढ़ते हुये न्यायमूर्ति लोढा ने कहा कि रिपोर्ट से संकेत मिलते हैं कि केन्द्र ने एक समान नीति का पालन नहीं किया है। कंपनियों की वित्तीय स्थिति और उनके कार्य निष्पादन का रिकार्ड की पुष्टि करने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इनमें से कुछ कंपनियो ने तो अपने बारे में भ्रामक तथ्य पेश करके कोयला ब्लाक हासिल किये थे।
कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं होने की स्थिति में सारे आबंटन रद्द करने का संकेत देते हुये शीर्ष अदालत ने सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि बड़ी संख्या में आवेदन करने वाली कंपनियों में से छोटे समूह की कंपनियों का ही ‘चयन’ क्यों किया गया।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘क्या इस पर वस्तुनिष्ठ तरीके से विचार किया गया या यह सिर्फ छांटों और चुनो की नीति थी? आपको स्पष्ट करना होगा’’ न्यायालय ने कहा कि 2100 आवेदनों में से सिर्फ 151 कंपनियों को ही कोयला ब्लाक आबंटित किया गया।
न्यायालय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो के निर्देश को भी एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमें उन्हें स्पष्ट करना होगा कि आठ मार्च को पेश प्रगति रिपोर्ट की पड़ताल खुद उन्होंने की थी और इसके तथ्यों को सरकार में बैठे राजनीतिको :मंत्रियों: से साझा नहीं किया गया था और भविष्य में भी यही प्रक्रिया अपनायी जाएगी। न्यायालय कोयला खानों के आबंटन में बड़े पैमाने पर अनियमित्ताओं को लेकर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एन गोपालस्वामी, पूर्व नौसेनाध्यक्ष एल रामदास और पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमणियन तथा वकील मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। याचिकाओं में कोयला आबंटन घोटाले की जांच के लिये एसआईटी के गठन का अनुरोध किया गया है।
याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जब यह कहा गया कि शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति को भी इस जांच में शामिल किया जा सकता है, न्यायाधीशों ने कहा कि वह अलग अलग मामले पर गौर नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसकी आवश्यकता ही नहीं है। न्यायाधीशों ने टिप्पणी की, ‘‘हम मोटे तौर पर अलग अलग मामलों पर नहीं है। यह देखना होगा कि क्या दिशा निर्देशों का पालन किया गया या नहीं। यदि प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है तो समूचा आबंटन ही खत्म हो जायेगा।’’ अटार्नी जनरल ने भी सरकार के नीतिगत मामले को न्यायालय में चुनौती दिये जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त की और कहा, ‘‘यह बहुत ही निराशाजनक है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सरकार की हर नीति को चुनौती दी जा रही है। इसे अंतिम निष्कर्ष तक ले जाना चाहिए।’’ इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि लोकतंत्र में ‘ये सब तो होगा ही। आप इससे बच नहीं सकते हैं।’’ न्यायालय में 24 जनवरी को सुनवाई के दौरान जांच एजेन्सी ने कहा था कि कोयला ब्लाक आबंटन की जांच में सरकारी महकमों द्वारा अनियमित्तायें करने का पता चला है। करीब तीन सौ कंपनियां उसकी जांच के दायरे में है।
जांच एजेन्सी ने न्यायालय में दाखिल हलफनामे में कहा था कि वह प्रत्येक उस कंपनी के खिलाफ जांच कर रही है जिसे 1993 से और विशेषकर 2006 से 2008 के दौरान कोयला ब्लाक आबंटन हुआ था।
जांच एजेन्सी ने न्यायालय में उन कंपनियों और उनके निदेशकों की सूची भी पेश की थी जिनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है। जांच एजेन्सी ने कहा था कि वह जांच की गोपनीयता और पवित्रता बनाये रखने के इरादे से ही जांच की सारी सूचनाओं का खुलासा नहीं कर रही है।केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कोयला ब्लाक आबंटन में कथित अनियमित्ताओं को लेकर दायर याचिका पर न्यायालय के निर्देश पर यह हलफनामा दाखिल किया था। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, March 12, 2013, 13:01