Last Updated: Tuesday, August 27, 2013, 19:41

नई दिल्ली : कोयला खदान आवंटन घोटाले में सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की इजाजत के सवाल पर केंद्रीय जांच ब्यूरो और केंद्र में टकराव सरीखी स्थिति बनती दिख रही है।
जांच एजेंसी सीबीआई ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि उसे इस मामले में वरिष्ठ अधिकारियों पर मुकदमा दायर करने के लिए सरकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। केन्द्र सरकार का सीबीआई के विपरीत है। सीबीआई की ओर से पेश छह पृष्ठ के हलफनामे में दावा किया गया है कि न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में मुकदमा दायर करने के लिए सरकार से मंजूरी या पहले अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
जांच ब्यूरो ने इस संबंध में 2जी स्पेक्ट्रम प्रकरण में शीर्ष अदालत के निर्णय का हवाला दिया है जिसमें सरकार के लिये अन्य मामलों में भी मुकदमा चलाने की अनुमति देने हेतु समय सीमा निर्धारित की गई है। हलफनामे में कहा गया है कि न्यायालय द्वारा जांच के आदेश दिये जाने वाले या उसकी निगरानी वाले मामलों में मुकदमा चलाने के लिये मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
हलफनामे के अनुसार कि दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए और भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 19 के बारे में शीर्ष अदालत के फैसलों में स्पष्ट है कि यदि न्यायालय से निर्देशित के निर्देश पर या न्यायलाय की निगरानी हो रही है तो ऐसे मामले में मुकदमा चलाने के लिये अनुमति लेना अनिवार्य नहीं है।
इसके विपरीत, केन्द्र सरकार ने शीर्ष अदालत में कहा था कि भ्रष्टाचार से संबंधित प्रकरण में न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ जांच के लिये पहले अनुमति लेना अनिवार्य है। केन्द्र सरकार के इस नजरिये का प्रतिवाद करते हुये जांच एजेन्सी ने अपने हलफनामे में कहा है कि न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में पहले मंजूरी लेने की अनिवार्य का मतलब प्रकरण की जांच की निगरानी करने के न्यायालय के अधिकार को निलंबित करना होगा।
जांच एजेंसी ने मंजूरी के सवाल पर संविधान पीठ की उस व्यवस्था का भी हवाला दिया है, जिसके अनुसार संवैधानिक न्यायालय को सीबीआई से जांच का निर्देश देने का अधिकार है और ऐसे मामलों में किसी प्रकार की मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। सीबीआई ने कहा है कि पहले मंजूरी लेने की अवधारणा के पीछे नौकरशाहों को ‘दुर्भावनापूर्ण और परेशान करने वाली जांच’ की ‘धमकी’ और ‘अपमान’ से संरक्षण प्रदान करने का मकसद है। हलफनामे के अनुसार, न्यायलाय की निगरानी वाले मामलों में अदालतें नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले या अभिभावक के रूप में काम करती हैं और अदालतों की निगरानी वाले मामलों में कानून की धारा 6-ए के तहत प्रदत्त संरक्षण का उद्देश्य पहले ही हासिल कर लिया गया होता है। इसतिलए ऐसे मामलों में सरकार से पहले मंजूरी लेना जरूरी नहीं है।
सीबीआई ने यह भी कहा है कि इसके अलावा धारा 6-ए की कोई अन्य व्याख्या इसे निर्थक बना देगी क्योंकि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा और यह उस मकसद को ही निष्पफल कर देगी जिसके लिये इस धारा को शामिल किया गया है। जांच एजेन्सी ने एक अन्य अर्जी में शीर्ष अदालत से कोयला खदान आबंटन घोटाला प्रकरण में अपने आतंरिक और विशेष वकीलों के साथ तथ्यों को साझा करने की अनुमति मांगी है।
जांच एजेन्सी ने कहा है कि अभियोजकों और विशेष वकीलों के नाम सीलबंद लिफाफे में 29 अगस्त तक न्यायालय को सौंप दिए जाएंगे। न्यायालय ने आठ मई को सीबीआई को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि जांच के विवरण किसी भी व्यक्ति या मंत्री सहित किसी प्राधिकारी या विधि अधिकारी और सीबीआई के वकीलों के साथ साझा नहीं किए जाएं। जांच एजेन्सी ने इस आदेश में संशोधन का अनुरोध करते हुये कहा है कि इन मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिये जांच के दौरान एकत्र किए गए साक्ष्य और दूसरी सामग्री की स्वीकार्यता के बारे में जांच की आवश्यकता है। फाइनल रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिये ऐसे मामले के सारे तथ्यों पर वकीलों और अभियोजकों के साथ विचार विमर्श की आवश्यकता है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, August 27, 2013, 19:41