Last Updated: Wednesday, May 8, 2013, 20:28

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कोयला खदान आवंटन घोटाले की जांच रिपोर्ट के ‘मूल तत्व’ में बदलाव को लेकर बुधवार को सरकार और केन्द्रीय जांच ब्यूरो की तीखी आलोचना की और कहा कि जांच एजेन्सी तो ‘पिंजरे में बंद तोते’ जैसी है। न्यायालय ने कहा कि जांच एजेन्सी को सभी तरह के ‘दबावों’ का मुकाबला करना चाहिए और उसे अपनी जांच रिपोर्ट कानून मंत्री सहित किसी के साथ भी साझा नहीं करनी चाहिए।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा, न्यायमूर्ति मदन लोकूर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने करीब ढाई घंटे की सुनवाई के दौरान सरकार और सीबीआई को आड़े हाथ लेते हुये कहा, ‘सरकारी अधिकारियों के सुझाव पर रिपोर्ट का मूल तत्व ही बदल दिया गया।’ इसके परिणामस्वरूप जांच की ‘पूरी दिशा’ ही बदल गयी।
न्यायालय ने इस प्रकरण की जांच कर रहे उप महानिरीक्षक रवि कांत मिश्रा को तत्काल वापस लेने के लिये सीबीआई और सरकार को कदम उठाने का निर्देश दिया। रवि कांत मिश्रा का गुप्तचर ब्यूरो में तबादला कर दिया गया था।
सीबीआई जांच रिपोर्ट में केन्द्र के हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त करते हुये न्यायाधीशों ने सीबीआई अधिकारियों से प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों की मुलाकात और रिपोर्ट के प्रारूप में बलदाव के सुझाव देने के लिये दोनों अधिकारियों को आड़े हाथ लिया।
न्यायाधीशों ने कहा कि सीबीआई का काम कथित गड़बड़ियों के लिये कोयला मंत्रालय के अधिकारियों से पूछताछ करना है। उन्होंने कहा, ‘सीबीआई के साथ विचार विमर्श करने का उनका कोई सरोकार नहीं है। संयुक्त सचिव जांच रिपोर्ट का अवलोकन कैसे कर सकते हैं?’
न्यायाधीशों ने इस मामले की सुनवाई के बाद महत्वपूर्ण आदेश में सरकार से कहा कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो को बाहरी दबाव और दखल से मुक्त करने के लिये दस जुलाई से पहले कानून बनाने के प्रयास किये जाये। न्यायालय ने सीबीआई को भी निर्देश दिया कि कोयला खदान आवंटन घोटाले की जांच से संबंधित कोई भी रिपोर्ट जांच दल के 33 सदस्यों और जांच एजेन्सी के निदेशक के अलावा किसी अधिकारी या मंत्रियों के साथ साझा नहीं की जाये।
सीबीआई के निदेशक ने अपने हलफनामे में न्यायालय को सूचित किया था कि कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कोयला घोटाला प्रकरण की जांच रिपोर्ट के मसौदे में कुछ ‘महत्वपूर्ण बदलाव’ किये थे जबकि प्रमुख विधि अधिकारियों और प्रधानमंत्री कार्यालय सहित दूसरे सरकारी अधिकारियों ने भी संशोधन करने के सुझाव दिये थे।
सीबीआई की इस कार्रवाई को लेकर विपक्ष, विशेषकर भाजपा, ने कानून मंत्री अश्विनी कुमार को बख्रास्त करने ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग को लेकर एक बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया।
न्यायालय ने सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा के नौ पेज के हलफनामे के अवलोकन के बाद जांच एजेन्सी को भी आड़े हाथ लिया और कहा कि यह तो ‘मालिक की आवाज बोल रहे पिंजरे में बंद तोते की तरह है।’
न्यायालय ने कहा, ‘यह एक दुखद कहानी है जिसमें एक तोते के कई मालिक हैं।’ सिन्हा ने हलफनामे में कम से कम चार बदलावों का विवरण दिया था। इनमें से दो बदलाव कानून मंत्री ने और दो प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों शत्रुध्न सिंह और ए के भल्ला ने किये थे।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘सीबीआई को यह पता होना चाहिए कि सरकार और उसके अधिकारियों के दबावों के सामने कैसे खड़ा होना चाहिए।’ न्यायालय ने कहा कि सीबीआई का काम सरकारी अधिकारियों से बातचीत करना नहीं बल्कि पूछताछ करके सच्चाई का पता लगाना है।
न्यायाधीशों ने कहा कि सीबीआई निदेशक और जांच दल को दृढ़ता से प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिवों को जांच रिपोर्ट दिखाने से इंकार करना चाहिए था। न्यायालय जानना चाहता था कि क्या कानून मंत्री दूसरे मंत्रालयों और प्रधानमंत्री कार्यालय से संबंद्ध व्यक्तियों की संलिप्तता से संबंधित मामले की जांच का विवरण या स्थिति रिपोर्ट सीबीआई से मांग सकते हैं।
न्यायाधीशों ने जांच एजेन्सी से सवाल किया,‘यदि कानून मंत्री और सरकारी अधिकारियों के सुझावों पर स्थिति रिपोर्ट में बदलाव किये जाते हैं तो क्या यह जांच की निष्पक्षता प्रभावित नहीं होती है?’ न्यायालय ने कहा कि कोयला खदान आवंटन घोटाले की जांच की निगरानी के लिये विशेष जांच दल गठित करने सहित विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जायेगा।
न्यायालय ने कहा कि सीबीआई निदेशक यह सुनिश्चित करें कि कोयला आवंटन घोटाला कांड के बारे में उसकी रिपोर्ट कानून मंत्री, दूसरे केन्द्रीय मंत्रियों, विधि अधिकारियों, सीबीआई के वकील और ब्यूरो के अभियोजन विभाग के किसी भी व्यक्ति को दिखायी नहीं जायेगी।
अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती आज भी अपने पुराने रूख पर कायम रहे। उन्होंने इससे पहले भी न्यायालय में कहा था कि उन्होंने सीबीआई की रिपोर्ट नहीं देखी है।
उन्होंने कहा, ‘मैंने कोयला घोटाला मामले में सीबीआई की रिपोर्ट न तो मांगी और न ही यह मुझे मिली।’ कानून मंत्री के कार्यालय में 6 मार्च को हुयी बैठक के बारे में उन्होंने कहा, ‘कानून मंत्री के सुझाव पर ही मेरी सीबीआई के अधिकारियों से मुलाकात हुयी थी।’ इस बैठक में सीबीआई निदेशक और प्रधानमंत्री कार्यालय तथा कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव भी मौजूद थे।
इस मामले की सुनवाई के दौरान आज न्यायाधीशों ने कहा कि कोयला खदान आवंटन प्रकरण में मामला दर्ज करने के बाद इसकी जांच में कोई ठोस प्रगति नहीं हुयी है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, May 8, 2013, 15:01