Last Updated: Thursday, September 5, 2013, 21:38
नई दिल्ली : केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कोयला खदान आवंटन घोटाले में नौकरशाहों से पूछताछ के सवाल पर आज उच्चतम न्यायालय में केन्द्र सरकार से अलग दृष्टिकोण अपनाया। जांच ब्यूरो ने दावा किया कि न्यायालय की निगरानी में चल रही जांच में संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों से पूछताछ के लिए पहले अनुमति देना जरूरी नहीं है।
अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती की दलीलों के बाद जांच एजेन्सी ने कहा कि दिल्ली विशेष पुलिस इस्टेबलिशमेन्ट कानून की धारा 6-ए संयुक्त सचिव और उससे उंचे पद पर आसीन अधिकारियों की जांच के लिये मंजूरी से संबंधित है और न्यायालय द्वारा इसे निरस्त किये जाने तक इसका पालन जरूरी है। जांच एजेन्सी ने कहा कि ऐसे मामलों में, जहां न्यायालय ने जांच के निर्देश दिये हैं या वह मामले की जांच की निगरानी कर रहा है, मुकदमा चलाने के लिये पहले मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति आर.एम. लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष जांच एजेन्सी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमरेन्द्र शरण ने कहा, ‘न्यायालय के निर्देश या न्यायालय की निगरानी वाले मामलों में मुकदमा चलाने के लिये मंजूरी लेना अनिवार्य नहीं है।’ जांच एजेन्सी 10 सितंबर को आगे बहस जारी रखेगी।
इससे पहले, अटार्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने बहस पूरी करते हुये कहा कि धारा 6-ए ईमानदार अधिकारियों को अनावश्यक रूप से परेशान करने के प्रयासों से बचाने के लिये है। अटार्नी जनरल न्यायालय द्वारा पूछे गये दो सवालों के जवाब दे रहे थे।
न्यायालय ने 10 जुलाई को अटार्नी जनरल से पूछा था कि यह स्पष्टीकरण क्यों नहीं दिया जाये कि भ्रष्टाचार निवारण कानून के तहत कथित अपराध के आरोप में जांच के लिये सरकार से अनुमति लेने की आवश्यता नहीं है क्योंकि सरकार का यही कहना है कि जांच की देखरेख का अधिकार पहले ही सरकार से केन्द्रीय सतर्कता आयोग को दिया जा चुका है। (एजेंसी)
First Published: Thursday, September 5, 2013, 21:38