Last Updated: Friday, July 26, 2013, 19:58

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जिन दवाओं का परीक्षण नहीं हुआ हो उनका इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल करने के लिए कुछ जरूरी मानकों का पालन करना जरूरी है। न्यायालय ने सरकार को यह निर्देश भी दिया कि जिन दवाओं का परीक्षण नहीं हुआ हो उनके क्लीनिकल ट्रायल के नियमन के लिए एक तंत्र विकसित करे।
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया कि बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों की ओर से किए जाने वाले दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल के विनियमन की खातिर कानून का खाका तैयार करने के लिए वह सभी राज्यों के मुख्य सचिवों या स्वास्थ्य सचिवों की बैठक बुलाए।
न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा और न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की पीठ ने केंद्र को बैठक बुलाने और नियमों का खाका तैयार करने के लिए चार हफ्ते का वक्त दिया। इस मुद्दे पर केंद्र को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सुझावों पर विचार करने का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि इंसानों पर दवाओं का क्लीनिकल ट्रायल करते वक्त कुछ मानकों और प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। मानव जीवन के बारे में हम चिंतित हैं। न्यायालय ने कहा कि आप किस तरह इस बात पर नजर रखते हैं कि क्लीनिकल ट्रायल से मौत न हो और इसका कोई बुरा असर न हो। इसके लिए उचित मुआवजे का प्रावधान भी होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि ऐसे परीक्षणों के विनियमन के लिए एक निगरानी समिति होनी चाहिए। न्यायालय ने केंद्र से कहा कि वह राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा करने के बाद 24 सितंबर तक हलफनामा दाखिल करे। (एजेंसी)
First Published: Friday, July 26, 2013, 19:58