Last Updated: Sunday, July 14, 2013, 12:15
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि खनिज संपदा का स्वामित्व सरकार के पास नहीं बल्कि यह भू-स्वामी में निहित होना चाहिए। न्यायमूर्ति आर.एम. लोढा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जिसके अनुसार भूमि के नीचे की मिट्टी या खनिज संपदा का स्वामित्व शासन के पास होगा।
न्यायालय ने केरल के कुछ भू-स्वामियों की याचिका पर यह व्यवस्था दी। केरल हाईकोर्ट ने इस मसले में राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमारी सुविचारित राय है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो यह घोषित करता हो कि भूमि के नीचे की सभी खनिज संपदा पर राज्य सरकार का अधिकार है। सामान्यतया भूमि के नीचे की मिट्टी और खनिज संपदा का स्वामित्व भूस्वामी के पास ही होना चाहिए बशर्ते भू-स्वामी को किसी वैध प्रक्रिया के माध्यम से इससे वंचित नहीं किया गया है।’ भूमिगत प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करने संबंधी विभिन्न कानूनों का जिक्र करते हुये न्यायालय ने कहा कि इन कानूनों में कहीं भी यह घोषित नहीं किया गया है कि इस पर शासन का मालिकाना हक है।
न्यायालय ने इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि भूमि के नीचे के संसाधनों पर भू स्वामी किसी प्रकार के अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि खान और खनिज (विकास एवं नियमन) कानून 1957 की धारा 425 के तहत वैध लाइसेंस या पट्टे के बगैर देश में किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि प्रतिबंधित है।
न्यायालय ने कहा कि यह कानून किसी भी तरह से यह नही कहता है कि खनिज संपदा में शासन का मालिकाना हक होगा और न ही इसमें किसी खदान के स्वामी को उसके मालिकाना हक से वंचित करने का प्रावधान है। शुल्क या कर की उगाही करने संबंधित सरकार के दावे के संदर्भ में न्यायाधीशों ने कहा कि यह शासकीय अधिकार है, मालिकाना हक नहीं है। लेकिन, न्यायालय ने सरकार को भू स्वामी द्वारा रॉयल्टी के भुगतान की देनदारी के मसले पर विचार करने से इंकार कर दिया क्योंकि इसका फैसला बड़ी पीठ करेगी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 14, 2013, 12:15