Last Updated: Wednesday, August 7, 2013, 17:46

नई दिल्ली : देश की तीन चौथाई आबादी को बेहद सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने के प्रावधान वाला बहुप्रतीक्षित ‘खाद्य सुरक्षा विधेयक’ बुधवार को लोकसभा में पेश हो गया। विधेयक पेश करने के साथ सरकार ने विपक्ष की इन आशंकाओं को नकार दिया कि इससे राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण होगा।
खाद्य मंत्री केवी थामस ने इस संबंध में पांच जुलाई को जारी किए गए अध्यादेश और पूर्व में पेश किए गए विधेयक को वापस लेते हुए नया विधेयक पेश किया। देश की 80 करोड़ आबादी को प्रति माह एक से तीन रुपये प्रति किलोग्राम की दर से प्रति व्यक्ति पांच किलोग्राम खाद्यान्न का अधिकार देने के प्रावधान वाले ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2013’ को पेश करते हुए थामस ने कहा कि इसमें राज्यों के खिलाफ जाने जैसी कोई बात नहीं है।
उन्होंने तमिलनाडु के अन्नाद्रमुक और द्रमुक दलों द्वारा नए विधेयक को लेकर जताई गई आशंकाओं के संबंध में कहा कि यह राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण नहीं है। यह संविधान के अनुरुप है। उन्होंने कहा कि सदन में विधेयक पर चर्चा के दौरान किसी भी चिंता को रखा जा सकता है। इससे पूर्व अन्नाद्रमुक के एम थम्बीदुरई ने यह कहते हुए विधेयक को पेश किए जाने का विरोध किया कि यह संविधान और संघीय व्यवस्था के खिलाफ है।
उन्होंने कहा कि यह खाद्य सुरक्षा विधेयक नहीं है बल्कि यह वास्तव में खाद्य असुरक्षा विधेयक है। उन्होंने इसके साथ ही कहा कि इसे राज्यों के साथ विचार विमर्श के बाद ही लाया जाना चाहिए था। अन्नाद्रमुक नेता ने कहा कि विधेयक में कई खामियां हैं जिनसे गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक राज्य सरकारों के कामकाज में हस्तक्षेप करने वाला है। थम्बीदुरई की पार्टी अन्नाद्रमुक तमिलनाडु में सत्ता में है। उन्होंने कहा कि विधेयक उनके राज्य को प्रभावित करेगा जहां सस्ता खाद्यान्न देने की सार्वभौमिक योजना पहले से ही राज्य सरकार द्वारा सफलतापूर्वक लागू की गई है। उन्होंने कहा कि विधेयक से राज्य के खजाने पर करीब तीन हजार करोड़ रूपये का अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा।
द्रमुक नेता टीआर बालू ने भी कहा कि उनकी पार्टी को भी विधेयक के मौजूदा स्वरूप को लेकर आपत्ति है और वह संशोधन पेश करेगी। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के दूरगामी प्रभाव होंगे। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, August 7, 2013, 17:46