गरीब मरीजों की मसीहा थी लक्ष्मी सहगल

गरीब मरीजों की मसीहा थी लक्ष्मी सहगल

गरीब मरीजों की मसीहा थी लक्ष्मी सहगल कानपुर: वयोवृद्ध कैप्टन डा लक्ष्मी सहगल को गरीब मरीजों का इतना ध्यान रहता था कि दिल का दौरा पड़ने से करीब 15 घंटे पहले तक अपने शहर में स्थित आर्यनगर के क्लीनिक में बैठकर मरीजों को देख रही थीं ।

यह कहना है उनकी बेटी और माकपा नेता तथा पूर्व सांसद सुभाषिनी अली का । कैप्टन सहगल के साथ अंतिम समय तक उनके पास रही अली का कहना है कि उनको मरीजों की सेवा करने का एक अजब सा जुनून था वह कभी इस बात का ख्याल नही करती थीं कि उनके मरीज के पास इलाज के लिये पैसा है या नही बस वह इलाज शुरू कर देती थी तभी उन्हें एक बार दिखाने आने वाली महिला रोगी उनकी फैन हो जाती थी और हमेशा उनसे ही अपना इलाज कराने आती थीं और वह भी अपने मरीजों को देखने के लिये हमेशा तैयार रहती थीं ।

1952 से कानपुर में प्रैक्टिस कर रही कैप्टन डा लक्ष्मी सहगल का पहला प्यार उनका अपना प्रोफेशन था । इसके अलावा वह अपने नाती (सुभाषिनी के बेटे ) फिल्म निर्देशक शाद अली की हर फिल्म सिनेमा हाल में जाकर देखती थी फिर वह चाहे बंटी और बबली हो या फिर चोर मचाये शोर । कुछ साल पहले एक बार फिल्म देखकर थियेटर से निकल रही डा सहगल से जब इस संवाददाता ने पूछा था कि कैसी लगी आपको शाद की फिल्म तो उन्होंने कहा कि बहुत अच्छी फिल्म बनाता है वह ।

कैप्टन लक्ष्मी सहगल का शादी से पहले नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था । उनका जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास में हुआ था । उनके पिता डा एस स्वामीनाथन एक मशहूर वकील थे और मद्रास हाईकोर्ट में वकालत करते थे । उनकी माता अम्मू स्वामीनाथन एक समाजसेवी थी और आजादी के आंदोलनो में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था ।

कैप्टन डा सहगल शुरू से ही बीमार गरीबों को इलाज के लिये परेशान देखकर दुखी हो जाती थीं । इसी के मददेनजर उन्होंने गरीबो की सेवा के लिये चिकित्सा पेशा चुना और 1938 में मद्रास मेडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की । वह महिला रोग विशेषज्ञ थीं ।

देश की आजादी की मशाल लिये नेता जी सुभाष चन्द्र बोस दो जुलाई 1943 को सिंगापुर गये । उन्होंने वहां आजादी की लड़ाई लड़ने के लिये एक महिला रेजीमेंट बनाने की घोषणा की और रानी लक्ष्मी बाई रेजीमेंट गठित की और लक्ष्मी सहगल उसमें कर्नल की हैसियत से शामिल हुई ।

लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और उसके बाद वह कानपुर में ही रहने लगी और यहीं मेडिकल प्रैक्टिस करने लगी । उनकी पुत्री माकपा नेता सुभाषिनी अली के अनुसार वह दो बहनें है उनकी एक और बहन अनीसा पुरी है ।

1971 में लक्ष्मी सहगल सीपीआईएम में शामिल हुई और पार्टी की तरफ से राज्यसभा की सदस्य भी बनी । वर्ष 2002 में वाम दलों की तरफ से वह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव मैदान में भी उतरी लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा । उन्हें 1998 में पदमविभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया गया था ।
इस दौरान उन्होंने कानपुर में मरीजो को देखना जारी रखा और आर्यनगर स्थित क्लीनिक में मरीजों का भारी जमावड़ा रहता था । आज उनके निधन से कानपुर में लोगों में दुख व्याप्त है क्योंकि वह हमेशा समाजसेवा और मरीजों की सेवा में लगी रहती थी । (एजेंसी)

First Published: Monday, July 23, 2012, 13:26

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