`चुनावी पवित्रता बनाए रखना अदालत का कर्तव्य`

`चुनावी पवित्रता बनाए रखना अदालत का कर्तव्य`

`चुनावी पवित्रता बनाए रखना अदालत का कर्तव्य` नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि देश में यदि कोई चुनाव भ्रष्टाचार और अनियमितताओं से प्रभावित होता है तो अदालत का यह कर्तव्य है कि वह पराजित प्रत्याशी की याचिका पर गौर करे क्योंकि ऐसा नहीं करने से चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता प्रभावित होगी।

न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश के मंत्री पोन्नाला लक्ष्मैया की याचिका खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। लक्ष्मैया ने 2009 के विधान सभा चुनाव में जनगांव सीट से पराजित टीआरएस के प्रत्याशी के प्रताप रेड्डी की चुनाव याचिका पर विचार करने के उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी थी।

न्यायाधीशों ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 100 और 123 में प्रदत्त भ्रष्ट आचरण और अनियमित्ताओं से दूषित होने वाले चुनाव को न तो मान्यता दी जा सकती है और न ही बहुमत के मतदाताओं के निर्णय का सम्मान किया जा सकता है। न्यायाधीशों ने कहा कि ऐसी स्थिति में न्यायालय का यह कर्तव्य है कि अनावश्यक रूप से तकनीकी नजरिया अपनाये बगैर ही कानून के दायरे में रहते हुए चुनाव याचिका में लगाए गए आरोपों पर विचार करे।

न्यायाधीशों ने कहा कि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि आमतौर पर चुनाव में सफल प्रत्याशी के निर्वाचन के मामले में न्यायालय सहजता से हस्तक्षेप नहीं करता है। न्यायालय का झुकाव सामान्यतया विजयी प्रत्याशी की ओर रहता है और भ्रष्ट आचरण तथा अनियमित्ताओं के आरोप सिद्ध करने की जिम्मेदारी चुनाव को चुनौती देने वाली प्रत्याशी की रहती है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, July 8, 2012, 11:13

comments powered by Disqus