Last Updated: Saturday, September 15, 2012, 16:46

खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) : विश्व के शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारतीय शिक्षण संस्थानों के स्थान न पाने पर निराशा जाहिर करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज छात्रों में वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करने के प्रयास नए सिरे से करने और इसके लिए उन्हें जरूरी सुविधाएं मुहैया कराने की जरूरत पर जोर दिया।
मुखर्जी ने कहा, ‘इस मामले में अपनी निराशा आपके साथ इसलिए साझा करना चाहता हूं कि एक भी भारतीय विश्वविद्यालय या आईआईटी संस्थानों सहित कोई भी उच्च शिक्षण संस्थान शीर्ष रैंक वाले, दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल नहीं हैं।’ उन्होंने यहां प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के 57वें दीक्षांत समारोह में कहा, ‘मेरे दिमाग में सबसे महत्वपूर्ण सवाल है, ऐसा क्यों? हम उभरती आर्थिक महाशक्ति हैं लेकिन अपने मानकों को और ऊंचा यानी शीर्ष के दस या फिर शीर्ष के 50 या 100 तक ही सही.. क्यों नहीं उठा सकते।’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारे छात्रों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के महती कार्य को शुरू करना बहुत जरूरी है। छात्रों के लिए विलंब किए बिना समुचित पहल की तैयारी अत्यंत जरूरी है।’ उन्होंने कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है जिसके चलते शिक्षकों और छात्रों को अत्याधुनिक पद्धति और शिक्षण में सहायक सामग्री-प्रौद्योगिकी मुहैया नहीं कराई जानी चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारी युवा पीढ़ी को इन सभी तौर तरीकों के माध्यम से सीखने, नई खोज करने और समाज को अधिक से अधिक योगदान देने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए।’ मुखर्जी ने कहा कि भारतीय माहौल और जरूरत के अनुसार, नई प्रौद्योगिकी से नए बाजार अवसर खुलेंगे तथा इन्हें हमारे छात्रों के पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
समारोह में राष्ट्रपति के साथ आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र और नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह भी मौजूद थे। इस आयोजन के साथ ही संस्थान के हीरक जयंती समारोहों की भी शुरुआत हुई। राष्ट्रपति ने भारतीय और विदेशी छात्रों के बीच विचारों के आदान-प्रदान तथा अधिक समन्वय पर भी जोर दिया और आईआईटी संस्थानों से अनुसंधान, प्रयोगों और नवोन्मेष के माध्यम से संस्थानों को लगातार उन्नत बनाए जाने में अहम भूमिका निभाने के लिए कहा।
पुरानी बातें याद करते हुए मुखर्जी ने कहा कि आज जिस मुख्य इमारत में आईआईटी, खड़गपुर है, उसमें कभी भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी रहे थे। संस्थान की जो मूल जगह है वहां कभी स्वतंत्रता आंदोलन के दो महान सेनानियों संतोष कुमार मित्रा और तारकेश्वर सेनगुप्ता ने अपनी सजा काटी थीं।’ उन्होंने कहा, ‘जब उन्हें (मित्रा और सेनगुप्ता को) पुलिस ने 16 सितंबर 1931 को गोली मारी तो उनके पार्थिव शरीर लेने के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस खुद हिजली हिरासत शिविर आए थे।’ तब इस इमारत को हिजली हिरासत शिविर कहा जाता था। मुखर्जी ने कहा, ‘इस घटना ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर सहित राष्ट्रीय नेताओं को उद्वेलित कर दिया और स्वतंत्रता संग्राम की आग और तेज करने के लिए भारतीयों की भावना को बल दिया। (एजेंसी)
First Published: Saturday, September 15, 2012, 16:46