Last Updated: Wednesday, August 15, 2012, 16:34

नई दिल्ली : कई बार न्याय क्षेत्र के अपने दायरे से बाहर जाने की बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश एस एच कपाड़िया ने आज सरकार को न्यायपालिका की स्वतंत्रता से छेड़छाड़ करने के खिलाफ आगाह किया।
उन्होंने कहा, ‘सरकार न्यायाधीशों को जवाबदेह बनाने के लिए कानून बना सकती है। हम उससे नहीं डरते। लेकिन उसे न्यायिक स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांत से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।’ उच्चतम न्यायालय में स्वाधीनता दिवस समारोह के अवसर पर उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि वह कानून लाते समय न्यायिक सिद्धांत की अवधारणा से नजर नहीं हटाये।
न्यायमूर्ति कपाड़िया संभवत: न्यायिक मानक एवं जवाबदेही विधेयक की ओर इशारा कर रहे थे जिसे लोकसभा की मंजूरी मिल गयी है और राज्यसभा में उसे पारित किया जाना है।
विधेयक के एक विवादास्पद प्रावधान में कहा गया, ‘कोई भी न्यायाधीश किसी भी संवैधानिक और विधिक संस्थान या अधिकारी के खिलाफ खुलाई अदालत में मामलों की सुनवाई के समय अवांछित टिप्पणी नहीं करेगा।’ इस विधेयक के तहत आम नागरिकों को अधिकार दिया गया कि वे भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं। लेकिन इस विधेयक के इस प्रावधान का विरोध हो रहा है क्योंकि न्यायविदों का कहना है कि इससे खुली अदालतों में न्यायाधीशों की आवाज को दबा दिया जायेगा।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सरकार को कानून बनाने से पहले विभिन्न न्यायविदों की राय लेनी चाहिए और दुनिया भर के घटनाक्रमों को ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘संविधान से छेड़छाड़ करने से पहले हमें विस्तृत अध्ययन करना चाहिए।’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिकों के बीच शक्तियों के संतुलन में किसी तरह की छेड़छाड़ से हमेशा के लिए संविधान को नुकसान पहुंचेगा।
न्यायमूर्ति कपाड़िया ने कहा, ‘यह संतुलन हमारे फैसलों से बिगड़ते हैं तथा न्यायाधीशों को अपने निर्णयों का मसौदा बनाते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि संविधान की व्याख्या व्यापक आधार पर की जानी चाहिए तथा चुनिंदा प्रावधानों की बनावटी अध्ययन गुमराह करने वाला हो सकता है। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, August 15, 2012, 15:51