जन्मदिन विशेष: फणीश्वरनाथ रेणु - Zee News हिंदी

जन्मदिन विशेष: फणीश्वरनाथ रेणु

नई दिल्ली : आंचलिक उपन्यासकार के तौर पर विख्यात हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकार फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं में गहरी लयबद्धता है और इसमें प्रकृति की आवाज समाहित है। फणीश्वर नाथ रेणु का चार मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना नामक गांव में जन्म हुआ था।
वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी कहा ‘रेणु जी के गद्य में काव्य है। उन्होंने अपनी रचनाओं को कविता की तरह लयात्मक बनाया है जिसमें देहाती माटी की महक समाहित है। वह आम जनों की भाषा में लिखने वाले साहित्यकार थे’

 

बिहार के अररिया जिले के फारबिसगंज विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के विधायक और फणीश्वर नाथ रेणु के पुत्र पदम पराग वेणु ने बताया ‘रेणु जी दमन और शोषण के खिलाफ आजीवन संघषर्रत रहे। उन्होंने न सिर्फ देश में बल्कि वर्ष 1950 में पड़ोसी देश नेपाल में भी जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए क्रान्ति और राजनीति में सक्रिय योगदान दिया।’

 

अपने पिता का 56 वर्ष का आयु में निधन का जिक्र करते हुए वेणु कहते हैं ‘उनके जाने से 10 वषरें तक काफी परेशानी झेलनी पड़ी। हालांकि हम लोग बालिग हो चुके थे लेकिन पिता के साये की कमी महसूस होती रही।’ फारबिसगंज वही विधानसभा सीट है जहां से रेणु ने चुनाव में खुद किस्मत आजमाई थी। हालांकि चुनाव में उनकी जमानत जब्त हो गयी थी।
वेणु कहते हैं, ‘मेरे पिताजी ने जो बीज बोया था हमलोग उसकी फसल काट रहे हैं। यहां से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था लेकिन मैं यहां से विधायक हूं।’ वरिष्ठ साहित्यकार अशोक चक्रधर का कहना है कि फणीश्वर नाथ रेणु को आंचलिक उपन्यासकार के तौर पर रेखांकित किया जाता है लेकिन सिर्फ इसमें ही उनका व्यक्तित्व नहीं समाता। उनके लेखन में मानवीय रसप्रियता झलकती है जिसमें ग्राम्य भोलापन है। उनके लेखन से झलकता है कि वह सुधार के पक्षधर थे लेकिन इसके लिए वह नारे नहीं लगाते सिर्फ गांव के लोगों के मीठे झूठों को पकड़ते हैं। उन्होंने बताया ‘‘रेणु जी की रचनाओं में महिलाएं बहुत ताकतवर होती थी।

 

उन्होंने बताया कि जितना सीधा-सपाट पुरूष होता है स्त्री वैसी नहीं होती। वह 10 तरह से सोचती है और रेणु जी महिलाओं के सोचने के 8 से 10 तरीकों को तो जानते ही थे। अशोक वाजपेयी, रेणु के कहानी संग्रह ‘ठुमरी’ को श्रेष्ठ कहानी संग्रह में गिनते हैं। वह कहते हैं कि ‘ठुमरी’ में ‘रसप्रिया’ नामक कहानी अद्धभुत है। इसके अलावा रेणु ने भारत और नेपाल के अकालों पर ‘दिनमान’ में काफी कुछ लिखा जो लाजवाब है।’

 

कथा-साहित्य के अतिरिक्त संस्मरण, रेखाचित्र, और रिपोर्ताज आदि विधाओं में लेखन के अलावा फणीश्वर नाथ रेणु का राजनीतिक आंदोलन से गहरा जुड़ाव रहा था। जीवन के संध्याकाल में वह जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल हुए, पुलिस दमन के शिकार हुए और जेल गये। 11 अप्रैल 1977 को फणीश्वर नाथ रेणु का देहावसान हो गया। (एजेंसी)

First Published: Sunday, March 4, 2012, 16:48

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