जब इंदिरा ने मांस को सब्जी समझकर खाया

जब इंदिरा ने मांस को सब्जी समझकर खाया

नई दिल्ली : महात्मा गांधी से प्रभावित होकर मांसाहारी भोजन छोड़ने वाले जवाहरलाल नेहरू और उनकी पत्नी अपनी बेटी इंदिरा को भी शाकाहारी बनाना चाहते थे लेकिन एक घटना ने उनकी इस हसरत को कभी पूरा नहीं होने दिया।

इंदिरा गांधी ने अपने संस्मरण ‘बचपन के दिन’ में लिखा, ‘गांधीजी से प्रभावित होकर मेरे माता पिता ने मांस खाना छोड़ दिया था और यह निर्णय किया गया कि मुझे भी शाकाहारी बनाएंगे। मैं चूंकि बड़ों के खाने से पहले खा लेती थी, इसलिए मुझे पता ही नहीं था कि उनका खाना मेरे से भिन्न होता था। एक दिन, मैं अपनी सहेली लीला के घर खेलने गई और उसने मुझे दोपहर के खाने पर रूकने को कहा। खाने में मांस परोसा गया। अगली बार जब मेरी दादी ने मुझसे पूछा कि मेरे लिए क्या मंगाया जाए तो मैंने उस स्वादिष्ट नई सब्जी के बारे में बताया जो मैंने लीला के घर खाई थी।

उन्होंने लिखा कि दादी ने सभी सब्जियों के नाम लिये लेकिन ऐसी कोई सब्जी हमारे घर में नहीं परोसी जाती थी । आखिर में लीला की मां को फोन करके यह पहेली सुलझाई गई । इसके साथ ही मेरे शाकाहारी भोजन का भी अंत हो गया। इंदिरा को खिलौनों का ज्यादा शौक नहीं था। शुरू में मेरा मनपसंद खिलौना एक भालू था जो उस पुरानी कहावत को याद दिलाता है कि दया से कोई मर भी सकता है क्योंकि प्यार के कारण ही मैंने उसे नहलाया था और अपनी आंटी की चहेरे पर लगाने वाली नई और महंगी फ्रंेच क्रीम को उस पर पोत दिया था। अपनी रूआंसी हो आई आंटी से डांट खाने के अलावा मेरे सुन्दर भालू के बाल हमेशा के लिए खराब हो गए। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, October 30, 2012, 16:56

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