Last Updated: Sunday, January 20, 2013, 07:41

नई दिल्ली : कांग्रेस नेतृत्व की शीर्ष पंक्ति में पहुंचने वाले पार्टी के ‘यूथ आइकन’ एवं भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे राहुल गांधी के समक्ष पार्टी का जनाधार बढ़ाने और युवा मतदाताओं की बढ़ती संख्या को पार्टी के पक्ष में करने का चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
देश के राजनीतिक रूप से शक्तिशाली नेहरु-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के वंशज 42 वर्षीय राहुल को पार्टी नेतृत्व में स्थान देना इस बात को रेखांकित करता है कि पार्टी के पास विकल्पों का अभाव है और वह नेतृत्व और दिशानिर्देश के लिए प्रथम राजनीतिक परिवार पर ही निर्भर है।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष बनाये जाने से पहले अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव राहुल ने वर्ष 2009 में संप्रग को सत्ता में लाने और उत्तर प्रदेश में पार्टी के पुनरुत्थान में मदद करने लिए अपने अभिभावकों की छत्रछाया से उबरते हुए अपने राजनीतिक कद में बढ़ोतरी की थी।
उन्होंने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सबसे अप्रत्याशित खुशी दिलायी और पार्टी केंद्र में तीसरी बार सत्ता में लौटने के लिए अब उनकी ओर देखेगी।
उत्तर प्रदेश के अमेठी से कांग्रेस सांसद राहुल को व्यापक रूप से पार्टी के निचले स्तर पर युवा चेहरों को लाने का श्रेय दिया जाता है। राहुल अपने संसदीय क्षेत्र और अन्य गांवों में राजनीति के गुर सीख रहे थे। उन्होंने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से पार्टी को 21 पर जिताने में मदद की। लेकिन व्यापक प्रचार के बावजूद वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन हतोत्साहित करने वाला रहा। पार्टी चुनाव में चौथे नम्बर पर रही जिसमें मुलायम यादव की समाजवादी पार्टी ने भारी जीत हासिल की।
उन्नीस जून 1970 को जन्मे राहुल पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी के पुत्र हैं। राहुल को एक शर्मीले व्यक्ति के रूप में देखा जाता था जिनकी रुचि राजनीति जीवन से अधिक क्रिकेट मैचों और पर्यटन में रहती थी।
इसलिए वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले राहुल के राजनीति में औपचारिक प्रवेश के निर्णय पर कई लोगों को आश्चर्य हुआ। (एजेंसी)
First Published: Sunday, January 20, 2013, 07:41