Last Updated: Tuesday, October 9, 2012, 15:11
नई दिल्ली : महात्मा गांधी से जुड़े प्रसंगों को कथा के रूप में कहने वाले प्रख्यात गांधीवादी नारायण देसाई ने दावा किया है कि आजादी के साथ देश के बंटवारे से महात्मा गांधी बहुत व्यथित थे। गांधी द्विराष्ट्र के बात से पूरी तरह असहमत थे और देश की एकता बनाए रखने के लिए जवाहरलाल नेहरू के स्थान पर मोहम्मद अली जिन्ना को भी देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए राजी थे।
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के प्रांगण में बापू के निजी सचिव महादेवभाई देसाई के पुत्र नारायणभाई देसाई ने गांधी कथा में बताया कि जिस प्रकार सोलेमन की कहानी में पुत्र को काटकर आधा आधा करने के न्याय पर पुत्र की मृत्यु की आशंका से व्यथित असली मां ने पुत्र से अपना दावा छोड़ दिया था, उसी प्रकार गांधी भी देश के बंटवारे के प्रस्ताव पर नेहरू के बजाय जिन्ना को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए सहमत थे।
उन्होंने बताया कि हालांकि उस समय गैर कांग्रेसी सत्ता तो कई राज्यों में थी, लेकिन बंटवारे का प्रस्ताव करने वाला मुस्लिम लीग सिर्फ बंगाल में था। देसाई ने बताया कि द्विराष्ट्र का प्रस्ताव भी मुस्लिम लीग का अपना नहीं था, बल्कि वह सावरकर की लिखी किताब ‘हिन्दुत्व’ से लिया गया था। बाद में अंग्रेजों ने अपनी ‘बांटो और राज करो’ नीति के तहत इस प्रस्ताव को और हवा दे दी और करीब नौ करोड़ हिन्दुस्तानियों के दिमाग में अलग राष्ट्र का सपना जगाने में सफल हो गए।
नारायणभाई ने बताया कि बंटवारे के बाद गांधी ने 11 और 12 फरवरी को तत्कालीन पाकिस्तान की राजधानी कराची जाने की योजना बनाई थी। लेकिन इससे पहले 30 जनवरी 1948 को ही उनकी हत्या कर दी गई।
उन्होंने बताया कि गांधी ने कराची जाकर जिन्ना के साथ मिलकर हिन्दु-मुस्लिम एकता और शांति के प्रसास करने की बात कही थी। इसके अलावा वह कांग्रेस को लोक सेना में परिवर्तित करने और ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए भी योजनाएं बना रहे थे।
First Published: Tuesday, October 9, 2012, 15:11