Last Updated: Thursday, January 17, 2013, 20:33

नई दिल्ली : विभिन्न अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने प्रत्येक थाने में किशोरों के मामलों को देखने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है ताकि बाल अपराधियों के मामलों से कारगर तरीके से निबटा जा सके।
प्रधान न्यायाधीश अलतमस कबीर, न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने ‘बचपन बचाओ आन्दोलन’ की जनहित याचिका पर गुरुवार को यह निर्देश दिया। न्यायाधीशों ने कहा कि देश में बच्चों के गुमशुदा होने के प्रत्येक मामले में प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए और पुलिस को इसकी जांच करनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि किशोरों से जुड़े मामलों से निबटने के लिए प्रत्येक जिले में विशेष रूप से प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों की इकाई का भी गठन किया जाना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि थानों में तैनात ऐसे अधिकारी सादे कपड़ों में होंगे ओर वे बाल कल्याण समिति के साथ तालमेल के साथ काम करेंगे।
याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश में 2008 से 2010 के दौरान एक लाख 70 हजार से अधिक बच्चे लापता हुये हैं और इनमें से अधिकतर बच्चों का देह व्यापार और बाल मजदूरी के लिए अपहरण किया गया है। शीर्ष अदालत ने गत वर्ष 16 मार्च को इस मामले में केन्द्र और राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों से जवाब तलब किये थे। लेकिन आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु सरकारों ने इस मामले में अपना जवाब ही दाखिल नहीं किया।
न्यायालय ने इन राज्यों को अंतिम अवसर देते हुये पांच फरवरी तक जवाब दाखिल करने की मोहलत दी है। न्यायालय ने स्प्ष्ट किया है कि यदि इस दौरान इन राज्यों ने जवाब दाखिल नहीं किया तो फिर इनके मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होना पड़ेगा। (एजेंसी)
First Published: Thursday, January 17, 2013, 20:33