जो जेल या हिरासत में हैं, नहीं लड़ पाएंगे चुनाव: सुप्रीम कोर्ट । Those in jail cannot contest elections: Supreme Court

जो जेल या हिरासत में हैं, नहीं लड़ पाएंगे चुनाव: सुप्रीम कोर्ट

जो जेल या हिरासत में हैं, नहीं लड़ पाएंगे चुनाव: सुप्रीम कोर्टज़ी मीडिया ब्‍यूरो/एजेंसी

नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को राजनीति में अपराधीकरण रोकने की दिशा में एक और अहम फैसला दिया। शीर्ष कोर्ट ने आज अपने एक फैसले में कहा कि यदि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है, वह विधायी निकायों के लिए चुनाव लड़ने का हकदार नहीं है। इस फैसले से उन राजनीतिक लोगों को झटका लगेगा जो किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्ध होने के बाद इस समय जेल में बंद हैं।

जेल में बंद विचाराधीन नेताओं के चुनाव लड़ने का चलन समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई व्यक्ति जो जेल में या पुलिस हिरासत में है, वह विधायी निकायों का चुनाव नहीं लड़ सकता।

आपराधिक तत्वों को संसद या विधानसभाओं में प्रवेश करने से रोकने वाले एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा कि सिर्फ ‘निर्वाचक’ ही चुनाव लड़ सकता है और जेल में होने या पुलिस हिरासत में होने के आधार पर उसका मत देने का अधिकार समाप्त हो जाता है। न्यायालय ने हालांकि स्पष्ट किया कि अयोग्य ठहराए जाने की बात उन लोगों पर लागू नहीं होगी जो किसी कानून के तहत एहतियातन हिरासत में लिए गए हों।

जनप्रतिनिधित्व कानून का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति एसजे मुखोपाध्याय ने कहा कि कानून की धारा 4 एवं 5 में संसद एवं विधानसभाओं की सदस्यता के लिए योग्यताओं का वर्णन किया गया है। इसमें एक योग्यता यह भी बताई गई है कि सदस्य को अनिवार्य रूप से निर्वाचक होना चाहिए।

पीठ ने कहा कि कानून की धारा 62 (5) में कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति किसी चुनाव में मतदान नहीं कर सकता जो किसी जेल में है या पुलिस की वैध हिरासत में है। धारा 4, 5 और 62 (5) का जिक्र करते हुए पीठ इस नतीजे पर पहुंची कि कोई व्यक्ति जो जेल या पुलिस हिरासत में है, वह चुनाव नहीं लड़ सकता।

न्यायालय ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य की उस अपील पर यह आदेश दिया जिसमें पटना उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गयी थी। पटना उच्च न्यायालय ने पुलिस हिरासत में बंद लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले में उसे कोई कमी नजर नहीं दिखती। 1951 के कानून की धारा 62 (5) के प्रावधानों के अनुसार जिस व्यक्ति को मत देने का अधिकार नहीं है, वह निर्वाचक नहीं है। ऐसे में वह लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं है।

बुधवार को इसी पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को निरस्त कर दिया था जो दोषी ठहराए गए जन प्रतिनिधियों को उच्चतम न्यायालय में याचिका लंबित होने के आधार पर अयोग्यता से संरक्षण प्रदान करता था। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि जनप्रतिनिधि दोषी ठहराये जाने की तारीख से ही अयोग्य होंगे।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय के इन दो फैसलों से राजनीतिक पार्टियां यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य होंगी कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारा जाए।

First Published: Thursday, July 11, 2013, 19:26

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