Last Updated: Tuesday, December 18, 2012, 21:24

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निचली अदालतों के दोषी को दी जाने वाली सजा के निर्धारण हेतु कोई विधायी या न्यायिक दिशा निर्देश नहीं होना भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली की सबसे कमजोर कड़ी है।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने अक्तूबर, 2000 में नकली शराब के सेवन के कारण 31 व्यक्तियों की मृत्यु के मामले में एक आरोपी को पांच साल की सजा देने के केरल उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ दायर अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
न्यायाधीशों ने कहा कि अपराध न्याय प्रणाली का केन्द्र बिन्दु गलत करने वाले व्यक्ति को दंड देना है लेकिन हमारे देश में अपराध न्याय प्रशासन का यह सबसे कमजोर हिस्सा हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि आरोपों के लिए दोषी करार दिये गये अभियुक्त को न्यायोचित दंड देने के लिए निचली अदालत की मदद हेतु विधायी या न्यायिक दिशा निर्देश ही नहीं हैं। नकली शराब कांड के अभियुक्त की अपील खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि दंड तो मानव जीवन की पवित्रता को स्वीकार करने वाला होना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय ने दोषी को सजा देते समय निचली अदालत को ध्यान में रखने के लिए कुछ बिन्दु निर्धारित किये जिसमें कैद की सजा के लिए ’अनुपात और निवारण’ प्रमुखता से शामिल हैं।
इसके अलावा आपराधिक ‘कृत्य के परिणामों’, ‘अपराध की गंभीरता और संगीनता के अनुरूप सजा देना’ और ‘अनायास थोपे गये अपराध के परिणाम का पूर्वाभास’’ जैसे बिन्दु भी शामिल किए गए हैं। न्यायालय ने 23 पेज के निर्णय में इस सवाल का जवाब दिया है कि क्या गैर इरादतन कृत्य के सामाजिक परिणामों और दूसरे व्यक्तियों पर इसका प्रभाव कठोर दंड देने के लिए विचारणीय मुद्दा हो सकता है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, December 18, 2012, 21:24