Last Updated: Wednesday, January 9, 2013, 16:17
नई दिल्ली : राष्ट्रीय राजधानी में 16 दिसंबर को 23 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार के मामले में बंद कमरे में सुनवाई करने और मीडिया को इसकी रिपोर्टिंग से दूर रखने के मजिस्ट्रिीय अदालत के फैसले को दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को बरकरार रखा।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश आर के गाबा ने कहा कि मजिस्ट्रेट के सात जनवरी के आदेश में कुछ भी ‘अवैध’ या ‘अनुचित’ नहीं था। न्यायाधीश ने कहा कि मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट न केवल अपने अधिकारों की सीमा में थी बल्कि बलात्कार और इससे जुड़े मामलों की कार्यवाही के लिए कार्यवाही में अपराधिक दंड संहिता की धारा 327 (2) के प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य थीं।
न्यायाधीश ने कहा कि हकीकत तो यह है कि उनके अदालत कक्ष में बड़ी संख्या में भीड़ थी जिसके कारण विचाराधीन कैदियों को भी लाने की जगह नहीं बची थी जिस वजह से अदालत को यह आदेश देना पड़ा। सत्र अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 327 (2) के तहत पीठासीन अधिकारी के लिए बलात्कार और संबंधित अपराधों के मामलों में बंद कमरे में सुनवाई करना अनिवार्य होता है।
बहस के दौरान, लोक अभियोजक राजीव मोहन ने याचिका का विरोध किया और कहा कि चूंकि इसमें मांगी गईं राहत अपराध प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के खिलाफ हैं, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, January 9, 2013, 16:17