नक्सलियों के खिलाफ विशेष कानून बने: विशेषज्ञ

नक्सलियों के खिलाफ विशेष कानून बने: विशेषज्ञ

नई दिल्ली : छत्तीसगढ़ में जघन्य नक्सली हमले को चिंता का विषय करार देते हुए सुरक्षा विशेषज्ञों ने इससे निपटने के लिए राज्यों के साथ मिलकर यथाशीघ्र एकीकृत नीति और इससे निपटने के लिए खासतौर से कानून बनाने और प्रदेशों के सुरक्षा बलों को आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से लैस करने की जरूरत बताई है।

इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस रिसर्च एंड एनालिसिस (आईडीएसए) की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद के स्वरूप में बदलाव देखने को मिला है और नक्सली हिंसा में मामूली कमी आई है लेकिन इसके प्रभाव में विस्तार देखने को मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर 2009 की सरकार की रिपोर्ट में 20 राज्यों के 223 जिलों के नक्सल प्रभावित होने की बात कही गई है जबकि अगस्त 2012 में सरकार ने संसद में बताया था कि 119 अन्य जिलों में नक्सलियों ने पांव पसारा है।’

सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह ने कहा कि सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 2005 से 2010 तक नक्सली हिंसा में 10,268 लोग मारे गए और बड़ी संख्या में सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया था। उन्होंने कहा कि यह कहना ठीक नहीं है कि नक्सली हिंसा पर केवल विकास से जुड़े कार्यो से लगाम लगाया जा सकता है । इसके लिए राज्यों के साथ मिलकर एकीकृत रणनीति बनाये जाने की जरूरत है।

सिंह ने कहा कि नक्सलियों से निपटने के लिए न तो कोई खास कानून है और न ही राज्य सुरक्षा बलों को आधुनिक हथियारों एवं उपकरणों से लैस करने के कार्यों को पूरा करने की गंभीरता दिख रही है। सीबीआई के पूर्व निदेशक ने कहा कि तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने फरवरी 2010 में कहा था कि नक्सलवाद से निपटने के लिए आधी अधूरी पहल कारगर नहीं हो सकती और यह समस्या गंभीर है। लेकिन इसके बाद भी नक्सल विरोधी रणनीति कारगर नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि एक ओर नक्सलियों को विकास की धारा से जोड़ने की बात हो रही है, तो दूसरी ओर वे लगातार अपने आधार में विस्तार कर रहे हैं।

आईडीएसए के विशेषज्ञ पीवी रमन्ना ने कहा कि माओवाद प्रभावित कई क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को तैनात किए जाने के बाद उनके प्रभाव में मामूली कमी आई है लेकिन वे फिर से एकजुट होकर अपना प्रभाव दिखाने को तत्पर हैं। हालांकि इस दिशा में समन्वित प्रयास से निश्चित तौर पर माओवादियों को अप्रासंगिक बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वामपंथी चरमपंथियों की ओर से 2009 में 362 आर्थिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया जबकि साल 2010 में 365 आर्थिक प्रतिष्ठानों, 2011 में 293, जुलाई 2012 तक 184 आर्थिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया है।

उन्होंने कहा कि माओवाद प्रभावित कई क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को तैनात किये जाने के बाद उनके प्रभाव में मामूली कमी आई है लेकिन वे फिर से एकजुट होकर अपना प्रभाव दिखाने को तत्पर हैं। हालांकि इस दिशा में समन्वित प्रयास से निश्चित तौर पर माओवादियों को अप्रासंगिक बनाया जा सकता है। आईडीएसए की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2009 से जुलाई 2012 के बीच नक्सलियों ने देश के आठ नक्सल प्रभावित राज्यों में 150 से अधिक स्कूली इमारतों, 67 पंचायत भवनों और 14 खानों को निशाना बनाया। इस अवधि में 163 रेलवे प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया जबकि 186 टेलीफोन प्रतिष्ठान नक्सलियों के निशाना बने। (एजेंसी)

First Published: Sunday, May 26, 2013, 19:25

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