Last Updated: Sunday, September 9, 2012, 15:44

आणंद (गुजरात) : भारत को दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बनाने के लिए श्वेत क्रांति लाने वाले वर्गीज कुरियन को देश में सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखने का श्रेय जाता है। अरबों रुपये वाले ब्रांड ‘अमूल’ को जन्म देने वाले कुरियन का आज सुबह 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। उन्हें सामुदायिक नेतृत्व के लिए रैमन मैग्सायसाय पुरस्कार, कार्नेगी.वाटलर विश्व शांति पुरस्कार और अमेरिका के इंटरनेशनल परसन ऑफ द ईयर सम्मान से भी नवाजा गया।
केरल के कोझिकोड में 26 नवंबर, 1921 को जन्मे कुरियन ने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जी सी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।
जमशेदपुर स्थित टिस्को में कुछ समय काम करने के बाद कुरियन को डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी गयी।
बेंगलूर के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कुरियन अमेरिका गये जहां उन्होंने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था।
भारत लौटने पर कुरियन को अपने बांड की अवधि की सेवा पूरी करने के लिए गुजरात के आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करने का मौका मिला। 1949 के अंत तक कुरियन को क्रीमरी से कार्यमुक्त करने का आदेश दे दिया गया। उन्होंने 1949 में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड के अध्यक्ष त्रिभुवन दास पटेल के अनुरोध पर डेयरी का काम संभाला। सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर इस डेयरी की स्थापना की गयी थी। बाद में पटेल ने कुरियन को एक डेयरी प्रसंस्करण उद्योग बनाने में मदद करने के लिए कहा जहां से ‘अमूल’ का जन्म हुआ।
अमूल के सहकारी मॉडल को सफलता मिली और पूरे गुजरात में इसे देखा जाने लगा। बाद में अलग अलग दुग्ध संघों को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ :जीसीएमएमएफ: के बैनर तले एक जगह लाया गया।
कुरियन ने सहकारिता के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में अपना कॅरियर समर्पित कर दिया और 1973 से 2006 तक जीसीएमएमएफ की सेवा की। उन्होंने 1979 से 2006 तक ग्रामीण प्रबंधन संस्थान (आईआरएमए) में भी काम किया।
आणंद में कुरियन के काम करने के दौरान भारतीय दुग्ध उद्योग की दिशा और दशा ही बदल गयी। गुजरात में पहले दुग्ध सहकारी संघ की शुरूआत 1946 में की गयी थी जब दो गांवों की समितियां इसकी सदस्य बनीं। सदस्य समितियों की संख्या आज 16,100 हो गयी है जिसमें 32 लाख सदस्य दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। भैंस के दूध से पहली बार पाउडर बनाने का श्रेय भी कुरियन को जाता है। उनके प्रयासों से ही दुनिया में पहली बार गाय के दूध से पाउडर बनाया गया।
अमूल की सफलता से अभिभूत होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (एनडीडीबी) का गठन किया जिससे पूरे देश में अमूल मॉडल को समझा और अपनाया गया। कुरियन को बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। एनडीडीबी ने 1970 में ‘ऑपरेशन फ्लड’ की शुरूआत की जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। कुरियन ने 1965 से 1998 तक 33 साल एनडीडीबी के अध्यक्ष के तौर पर सेवाएं दीं। 60 के दशक में भारत में दूध की खपत जहां दो करोड़ टन थी वहीं 2011 में यह 12.2 करोड़ टन पहुंच गयी।
कुरियन के निजी जीवन से जुड़ी एक रोचक और दिलचस्प बात यह है कि देश में ‘श्वेत क्रांति’ लाने वाला और ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर यह शख्स खुद दूध नहीं पीता था। वह कहते थे, मैं दूध नहीं पीता क्योंकि मुझे यह अच्छा नहीं लगता। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 9, 2012, 09:52