निजी कॉलेजों का कैपिटेशन-फी मांगना गैरकानूनी : SC

निजी कॉलेजों का कैपिटेशन-फी मांगना गैरकानूनी : SC

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा महाविद्यालयों द्वारा छात्रों से कैपिटेशन फी की मांग करना गैरकानूनी और अनैतिक है। साथ ही न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने को भी कहा है। कैपिटेशन फी की मांग के चलते मेधावी किंतु निर्धन छात्र इन संस्थानों में प्रवेश से वंचित रह जाते हैं।

न्यायालय ने कहा है कि एमबीबीएस और स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए अनुदान या अन्य रूप में करोड़ों रूपये बतौर कैपिटेश्न फी लेने की वजह से मेधावी किंतु निर्धन छात्र इन संस्थानों में प्रवेश नहीं ले पाते। न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की पीठ ने कहा, ‘यह भी देखा गया है कि विभिन्न संस्थान अधिक संख्या में छात्रों के प्रवेश के लिए दबाव बनाते हैं। यह छात्र समुदाय के लिए लाभकारी नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि ‘स्टूडेंट्स फाइनेन्सिंग इन्स्टीट्यूशन’ बनते जा रहे निजी महाविद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आई है। सरकारी एजेंसियों को इस मुद्दे पर विचार करने की जरूरत है ताकि इस संबंध में एक उचित कानून बनाया जा सके।

पीठ ने कहा कि इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती कि टीएमए पाई फाउंडेशन के मामले में, किसी भी तरह का लाभ या कैपिटेशन फी नहीं लेने के लिए इस अदालत द्वारा संवैधानिक घोषणाएं किए जाने के बावजूद हमारे देश में यह सब हो रहा है।

न्यायालय ने कहा, ‘केंद्र सरकार, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, सीबीआई या खुफिया विभाग को इस तरह की अनैतिक प्रक्रियाओं पर रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे अन्यथा स्ववित्तपोषी संस्थान स्टूडेंट्स फाइनेन्सिंग इन्स्टीट्यूशन्स में तब्दील हो जाएंगे।’ पीठ ने कहा कि बड़ी संख्या में चिकित्सा, इंजीनियरिंग, नर्सिंग और फर्मास्यूटिकल महाविद्यालयों के खुलने की वजह से देश में शिक्षा की गुणवत्ता पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ा है, खास कर चिकित्सकीय क्षेत्र में और इसके गंभीर आत्मावलोकन की जरूरत है।

न्यायालय ने कहा, ‘निजी चिकित्सा संस्थान हमेशा ही अपने महाविद्यालयों में ज्यादा सीटों की मांग करते हैं, भले ही उनके पास पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं, क्लीनिकल सामग्री, संकाय सदस्य हों या न हों।’ पीठ के अनुसार, अक्सर खबरें मिलती हैं कि कई चिकित्सा महाविद्यालय चलने वाले निजी संस्थान एमबीबीएस तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए लाखों और कई बार करोड़ों रुपये की मांग करते हैं।

पीठ ने हालिया मामलों का हवाला भी दिया जिनमें सीबीआई को इस बात पर जोर देने के लिए तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री तथा भारतीय चिकित्सा परिषद के अध्यक्ष के खिलाफ आरोप लगाने पड़े कि सरकारी स्तर पर सब कुछ ठीक नहीं है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, September 8, 2013, 15:14

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