Last Updated: Sunday, May 26, 2013, 13:49
नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘समान काम के लिये समान वेतन’ का नियम ठेका और नियमित कर्मचारियों के वेतन में अंतर के मामले में लागू नहीं हो सकता है क्योंकि नियमित कर्मचारी को एक गहन चयन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
न्यायमूर्ति प्रदीप नंदराजोग और न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव की खंडपीठ ने कहा कि ठेका कर्मचारियों और चयन प्रक्रिया के बाद नियमित कर्मचारी के रूप में नियुक्त व्यक्ति के वेतन में पूरी तरह समानता नहीं हो सकती है। ‘समान काम के लिये समान वेतन’ के सिद्धांत के बारे में न्यायालय ने कहा कि यदि ठेका कर्मचारी और नियमित कर्मचारी के काम में एकदम समानता है तो अदालत समान वेतन और भत्ते के भुगतान का निर्देश सकती है।
न्यायालय ने कहा कि लेकिन यदि एक वर्ग जो चयन प्रक्रिया से नहीं गुजरा है और दूसरा वर्ग जो इससे गुजरता है तो ऐसी स्थिति में अदालत वृद्धि का लाभ देने से इंकार कर सकती है।
न्यायालय ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के परस्पर विरोधी दो फैसलों के खिलाफ दिल्ली सरकार के अस्पताल डा. बाबा साहिब अंबेडकर अस्पताल के प्रबंधन और एक कर्मचारी की अलग अलग अपील पर यह व्यवस्था दी।
अस्पताल ने ठेके पर कार्यरत कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन और दूसरे भत्ते देने के कैट के आदेश को चुनौती दी थी जबकि दूसरी अपील एक ठेका कर्मचारी ने दायर की थी जिसकी समान वेतन दिलाने की याचिका कैट ने अस्वीकार कर दी थी।
न्यायालय ने एक दशक से भी अधिक समय से स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में नियमित पदों का सृजन करने की बजाये तदर्थ व्यवस्था बनाये रखने के लिये दिल्ली सरकार की आलोचना की है। न्यायालय ने कहा कि दिल्ली सरकार को स्वास्थ्य विभाग को सुव्यवस्थित करना चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि उसके विभिन्न अस्पतालों में एक दशक से भी अधिक समय से ठेके पर कर्मचारी काम कर रहे हैं और यदि नियमित पदों के सृजन की आवश्यकता है तो ऐसा नहीं करने की कोई वजह नजर नहीं आती है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, May 26, 2013, 13:49