Last Updated: Sunday, July 22, 2012, 22:54
नई दिल्ली : देश में अब तक चौदह बार हुए राष्ट्रपति चुनाव से कई रोचक किस्से जुड़े हुए हैं और यह चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहा। सत्तारूढ़ संप्रग के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह ने मतपत्र पर विपक्षी उम्मीदवार पी ए संगमा के पक्ष में ठप्पा लगा दिया और बाद में भूल सुधार करते हुए उसे फाड़ दिया और दूसरे मतपत्र पर प्रणव दा के पक्ष में वोट डाला।
संगमा खेमे की ओर से पहले मतपत्र को फाड़े जाने की शिकायत के बाद चुनाव आयोग ने मुलायम के वोट को खारिज कर दिया। वैसे इस बार कुछ 81 मत खारिज किये गये। इससे पहले के कुछ राष्ट्रपति चुनाव अदालतों में चुनौती दिये जाने के कारण भी सुखिर्यों में रहे । ऐसा नियम है कि राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित व्यक्ति के निर्वाचन को सिर्फ उच्चतम न्यायालय में ही चुनौती जा सकती है और यह चुनौती भी सिर्फ कोई प्रत्याशी या निर्वाचक मंडल के कम से कम 20 सदस्य मिलकर दे सकते हैं।
इससे पहले, राष्ट्रपति का सबसे दिलचस्प चुनाव अगस्त 1969 में हुआ था। इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार थे जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने वी वी गिरि को अपने प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतारा था। चुनाव में हो रही इस रस्साकसी को सभी देख रहे थे लेकिन अचानक ही मतदान से ठीक पहले संसद के केन्द्रीय पक्ष में एक गुमनाम पर्चा वितरित हुआ। इसमें नीलम संजीव रेड्डी के बारे में तमाम अनर्गल बातें लिखी थीं। चुनाव में अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील हुई और इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी चुनाव हार गए ।
इसके बाद के चुनावों में शिव कृपाल सिंह, फूल सिंह, सांसद एन श्रीराम रेड्डी सहित 13 सांसदों ने और सांसद अब्दुल गनी डार और नौ अन्य सांसदों तथा आठ विधायकों ने उच्चतम न्यायालय में अलग अलग चुनाव याचिकायें दायर कीं। इनमें से शिव कृपाल सिंह और फूल सिंह का नामांकन पत्र रिटर्निग अधिकारी ने अस्वीकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति एस एम सीकरी की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इन चुनाव याचिकाओं पर विचार किया। संविधान पीठ ने याचिकाओं में उठाये गए विभिन्न सवालों पर विस्तार से सुनवाई के बाद सभी याचिकाएं खारिज कर दीं। 1969 के चुनाव के दौरान वितरित पर्चे से जुड़ी याचिकाओं पर विस्तार से सुनवाई के बाद संविधान पीठ ने 14 सितंबर, 1970 को अपने फैसले में कहा कि इस पर्चे में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे अनावश्यक रूप से प्रभावित करने वाला माना जाए।
इस चुनाव से पहले ही अप्रैल 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया था। न्यायालय ने इस तथ्य को नोट किया कि सुनवाई के दौरान कांग्रेस दो खेमों में बंटी हुई थी। एक खेमा कांग्रेस :ओ: और दूसरा खेमा कांग्रेस :आर: के नाम से जाना जाता था।
इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय में 116 गवाहों से पूछताछ हुई। इनमें से 55 गवाह याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे जबकि 61 गवाह वी वी गिरि की ओर से पेश हुए । यह पर्चा डाक से भेजा गया था जिसे केन्द्रीय कक्ष में बांटा गया।
वर्ष 1987 में राष्ट्रपति के चुनाव ने उस समय रोचक मोड़ ले लिया जब कांग्रेस के आर वेंकटरमण और विपक्ष के न्यायमूर्ति वी कृष्ण अय्यर के अलावा एक निर्दलीय मिथिलेश कुमार का नामांकन पत्र भी सही पाया गया। निर्दलीय मिथिलेश कुमार की स्थिति इतनी विचित्र थी कि चुनाव के दौरान एक बार वह मोती बाग में एक पेड़ के नीचे सो गए तो उनके चारों ओर सुरक्षाकर्मियों को सुरक्षा घेरा डालना पड़ा। मिथिलेश कुमार को सुरक्षा कारणों से नयी दिल्ली इलाके में एक विशाल बंगला आवंटित किया गया था।
इस बंगले में मिथिलेश कुमार के सोने के लिए एक बड़ी और मोटी दरी मुहैया करायी गयी थी। इस चुनाव में हालांकि वेंकटरमण भारी मतों से विजयी हुए थे लेकिन मिथिलेश कुमार भी 2223 मत प्राप्त करने में सफल रहे थे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 22, 2012, 22:54