Last Updated: Friday, February 22, 2013, 21:31
नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि जीवन साथी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना और अशोभनीय आरोप लगाना विवाह विच्छेद के लिये मानसिक क्रूरता ही है। न्यायालय ने कहा कि जीवन साथी के प्रति क्रूरता के लिये एक ही छत के नीचे रहना पूर्व शर्त नहीं हो सकती है।
न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त करते हुये कहा कि मानसिक क्रूरता के लिये पति पत्नी का एक ही छत के नीचे रहना जरूरी नहीं है। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि यदि पति पत्नी एक साथ नहीं रहते हैं, तो जीवन साथी के प्रति क्रूरता का सवाल ही नहीं उठता।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमारी राय में उच्च न्यायालय का यह निष्कर्ष गलत था कि पति पत्नी यदि एक साथ नहीं रहते हैं तो एक दूसरे के प्रति क्रूरता का सवाल ही नहीं है। एक ही छत के नीचे एक साथ रहना मानसिक क्रूरता के लिये पूर्व शर्त नहीं है। जीवन साथी एक ही छत के नीचे नहीं रहते हुये भी अपने आचरण से मानसिक क्रूरता कर सकता है।’ न्यायाधीशों ने इस व्यवस्था के साथ ही पिछले दस साल से अलग अलग जीवन गुजार रहे इस जोड़े का विवाह विच्छेद कर दिया। ये दंपती अपनी शादी के अगले दिन ही अलग अलग हो गये थे।
न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया कि पत्नी ने अलग रहते हुये अपने पति और सुसराल वालों के प्रति अशोभनीय और मानहानि करने वाले आरोप लगाये और कहा कि इसे जीवन साथी के प्रति मानसिक क्रूरता ही माना जायेगा। न्यायालय ने कहा कि जीवन साथी से अलग रहते हुये भी दूसरे पक्ष को अश्लील और मानहानि वाले पत्र या नोटिस भेजकर या इसी तरह के आरोपों के साथ शिकायत दायर करके या अदालती कार्यवाही करके मानसिक क्रूरता पहुंचायी जा सकती है। (एजेंसी)
First Published: Friday, February 22, 2013, 21:31