Last Updated: Tuesday, December 18, 2012, 21:22
नई दिल्ली : पहले कथित विवाह का प्रमाण पत्र वर्तमान वैवाहिक संबंधों को अमान्य घोषित करने के लिए उस समय तक पर्याप्त आधार नहीं है जब तक इस संबंध में डिक्री पारित न हो जाए।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने कहा कि विवाह अमान्य घोषित करने संबंधी डिक्री पारित होने तक अदालत यही मानकर कार्यवाही करेगी कि संबंधित पक्षों के बीच वैवाहिक रिश्ते हैं न कि विवाह जैसे। न्यायाधीशों ने कहा कि उच्च न्यायालय सहित किसी भी अदालत के लिये वैवाहिक हैसियत के बारे में पूरी तरह से और प्रभावी फैसले के लिए अपीलकर्ता द्वारा पहले विवाह के दावे के समर्थन में विशेष विवाह कानून, 1954 की धारा 13 के तहत जारी विवाह प्रमाण पत्र पेश करना पर्याप्त नहीं है।
न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने पति द्वारा पेश पहले विवाह के प्रमाण पत्र के आधार पर महिला की इस व्यक्ति से विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था। यह महिला अपने पति से गुजारा भत्ता चाहती है और इसी को लेकर दंपति के बीच मुकदमा चल रहा है।
निचली अदालत ने इस महिला को दो हजार रुपए प्रति माह गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था जिसे उसके पति ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। इस याचिका के लंबित होने के दौरान ही उसने पहले कथित विवाह के आधार निचली अदालत का आदेश वापस लेने का अनुरोध किया था। निचली अदालत ने जब उसे कोई राहत देने से इंकार कर दिया तो इस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने नौ अप्रैल, 2010 को इस दंपति के विवाह को अमान्य घेाषित कर दिया था जिसके बाद महिला ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का फैसला निरस्त करते हुए कहा कि महिला के पक्ष में गुजारा भत्ते के आदेश में अदालत का हस्तक्षेप न्यायोचित नहीं था। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, December 18, 2012, 21:22