Last Updated: Monday, April 8, 2013, 13:47

नई दिल्ली : भाजपा महासचिव अमित शाह को राहत देते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज सीबीआई को तुलसीराम प्रजापति हत्याकांड मामले में उनके खिलाफ अलग से सुनवाई करने से रोक दिया और इस मामले को सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले के साथ जोड़ देने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति पी सदाशिवम की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि प्रजापति और सोहराबुद्दीन की हत्याएं एक ही साजिश का हिस्सा थीं और दोनों मामलों में अलग अलग सुनवाई नहीं की जा सकती।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी शाह के खिलाफ सीबीआई प्रजापति हत्याकांड मामले में एक अलग आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है और जांच एजेंसी द्वारा शाह को गिरफ्तार किए जाने की भी संभावना थी। इससे पहले, सोहराबुद्दीन मामले में शाह तीन माह जेल में बंद रहे और फिर उन्हें जमानत पर रिहा किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था शाह की अपील पर दी है। शाह ने प्रजापति हत्याकांड मामले में सीबीआई द्वारा अलग आरोपपत्र दाखिल किए जाने को चुनौती दी थी। शाह का तर्क था कि प्रजापति हत्याकांड मामले में दाखिल आरोपपत्र को सोहराबुद्दीन शेख हत्याकांड मामले में दूसरे पूरक आरोप पत्र की तरह समझा जाना चाहिए।
सीबीआई के आरोपपत्र में शाह तथा 19 अन्य के नाम हैं और जांच एजेंसी ने उन पर हत्या, आपराधिक षड्यंत्र करने और सबूत नष्ट करने के आरोप लगाए हैं।
सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी को मार डालने के मामले में मुख्य आरोपी शाह को आरोपपत्र में आरोपी संख्या एक तथा प्रजापति को फर्जी मुठभेड़ में मार डालने का मुख्य साजिशकर्ता कहा गया है। प्रजापति को 28 दिसंबर 2006 को पालनपुर में दांता के समीप छपरी गांव में मार डाला गया था।
सीबीआई ने कहा है कि प्रजापति सोहराबुद्दीन की हत्या के मामले का मुख्य गवाह था और उसकी हत्या एक बड़ी साजिश के तहत की गई जिसमें राज्य पुलिस प्रशासन के तत्कालीन प्रमुख शाह कथित तौर पर शामिल थे।
सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी का गुजरात आतंकवाद निरोधक दस्ते :एटीएस: ने हैदराबाद से कथित तौर पर अपहरण कर लिया था और दोनों नवंबर 2005 में गांधीनगर के समीप फर्जी मुठभेड़ में मार डाले गए थे।
समझा जाता है कि प्रजापति सोहराबुद्दीन का साथी था। जांच एजेंसी के मुताबिक, प्रजापति सोहराबुद्दीन और कौसर बी की हत्या का गवाह था जिसकी वजह से एटीएस ने उसे भी खत्म कर दिया।
शाह को सोहराबुद्दीन की हत्या के मामले में सीबीआई ने 25 जुलाई 2010 को गिरफ्तार किया था। तब उन्हें अहमदाबाद में साबरमती जेल में तीन माह से अधिक समय बिताना पड़ा था। इस मामले की सुनवाई मुंबई की अदालत में स्थानांतरित कर दी गई। उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को प्रजापति मामले की सुनवाई स्थानांतरित करने के लिए अनुमति मांगने की छूट भी दी थी। (एजेंसी)
First Published: Monday, April 8, 2013, 12:38