प्रमोशन में आरक्षण बिल राज्यसभा में 10 के मुकाबले 206 मतों से पास ---Rajya Sabha passes promotion quota bill

प्रमोशन में आरक्षण बिल राज्यसभा में 10 के मुकाबले 206 मतों से पास

प्रमोशन में आरक्षण बिल राज्यसभा में 10 के मुकाबले 206 मतों से पासनई दिल्ली : सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान वाले बहुचर्चित संविधान संशोधन विधेयक को आज राज्यसभा ने 10 के मुकाबले 206 मतों से पारित कर दिया। मुख्य विपक्षी दल भाजपा के समर्थन के कारण सरकार को उच्च सदन में इस विधेयक को पारित करने में कोई मुश्किल नहीं आई हालांकि सरकार को बाहर से समर्थन दे रही सपा सदस्यों ने इसके विरोध में मतदान किया। विधेयक पर चर्चा के दौरान शिवसेना ने भी इसका विरोध किया था। विधेयक पर लाए गए दो सरकारी संशोधनों को भी 10 के मुकाबले 206 मतों से स्वीकार कर लिया। साथ ही भाजपा के रामा जोइस ने विधेयक पर लाए अपने संशोधन वापस ले लिए।

विधेयक पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी ने सदन को आश्वासन दिया कि यह कानून लागू होने के बाद 1995 से पहले जिनकी पदोन्नति हो चुकी है, उन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इस बारे में राज्यों को सलाह दी जाएगी।

इसके संविधान संशोधन विधेयक होने के कारण 245 सदस्यीय सदन के दो तिहाई बहुमत से पारित किया जाना अनिवार्य था। नारायणसामी ने संविधान (117वां संशोधन) विधेयक लाए जाने की जरूरत को सही ठहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार की नौकरियों में आज भी अनुसूचित जाति और जनजाति कर्मचारियों का प्रतिशत बेहद कम है।

उन्होंने कहा है कि देश में आरक्षण लागू होने के 50 साल से अधिक हो जाने के बाद भी सरकारी नौकरियों में इन वर्गो का प्रतिशत बेहद कम है। उन्होंने कहा कि केंद्र में सचिव स्तर के 102 पदों में से मात्र दो पदों पर अनुसूचित जनजाति के अधिकारी हैं। इसी प्रकार अतिरिक्त सचिव के 113 पदों में से अनुसूचित जाति के पांच और जनजाति के एक तथा अन्य पिछड़ा वर्ग का कोई भी अधिकारी नहीं है।

नारायणसामी ने कहा कि इसी प्रकार संयुक्त सचिव के 435 पदों में से मात्र 31 एससी और 14 एसटी और एक ओबीसी अधिकारी हैं। उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों से पता चलता है कि सरकारी नौकरियों में आज भी एससी और एसटी कर्मियों का प्रतिशत बेहद कम है।

सरकार को यह संविधान संशोधन विधेयक लाने की जरूरत इसलिए पड़ी कि अप्रैल 2012 में उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठता नियमों को खारिज कर दिया था जिसमें पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान था। संविधान (117वां संशोधन) विधेयक के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4ए) के स्थान पर नया प्रावधान होगा। इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि संविधान के तहत अधिसूचित सभी एससी और एसटी को पिछड़ा माना जाएगा।

संविधान के अनुच्छेद 335 के तहत एससी और एसटी के दावों का प्रशासन की कुशलता बरकरार रखने के साथ तालमेल रहना चाहिए। विधेयक में कहा गया है कि संशोधित प्रावधान संविधान के संबद्ध अनुच्छेद का स्थान लेंगे।
चर्चा के दौरान निर्दलीय मोहम्मद अदीब ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि इससे प्रशासनिक तंत्र की कुशलता पर विपरीत असर पड़ेगा। उन्होंने समाजवादी पार्टी की इस मांग का समर्थन किया कि ओबीसी और मुस्लिमों को भी इसी तरीके के आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए। संविधान संशोधन के खिलाफ जो दस मत पड़े उनमें सपा के नौ सदस्यों के अलावा एक मत अदीब का भी था।

अधिकतर सदस्यों ने विधेयक पर चर्चा के दौरान इस विधेयक का समर्थन किया। लेकिन जदयू के अली अनवर अंसारी, लोजपा के राम विलास पासवान, राजद के रामकृपाल यादव सहित कई सदस्यों ने ओबीसी और मुसलमानों को आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान में संशोधन की मांग भी की।

सपा के रामगोपाल यादव ने कहा कि सरकार भले ही अभी अपने बहुमत के जोर पर संसद में इस विधेयक को पारित कर ले लेकिन उसे जनता के बीच जाकर इस मामले में जवाब देना पड़ेगा क्योंकि यह देश की बहुसंख्यक आबादी की आकांक्षाओं के खिलाफ है। उन्होंने ओबीसी और मुसलमानों को भी इसी तरह का लाभ देने के लिए संविधान संशोधन किए जाने की मांग की।

यादव ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इससे संबंधित सरकारी नियमों को इसलिए खारिज किया क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार एससी व एसटी संबंधी उपयुक्त आंकड़े मुहैया कराने में नाकाम रही। लेकिन उन्होंने कहा कि सरकार ने यह विधेयक बनाते समय ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया है।

उन्होंने कहा कि इस बात की पूरी आशंका है कि न्यायपालिका इस विधेयक को सिरे से खारिज कर देगी। सपा के ही नरेश अग्रवाल ने इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति में भेजे जाने की मांग की और कहा कि इस कानून के लागू होने से समाज में मतभेद पैदा होंगे। मुसलमानों की स्थिति की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सच्चर समिति की रिपोर्ट लागू किए जाने पर विचार किया जाना चाहिए। लोजपा के रामविलास पासवान ने इसे जाति नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई बताते हुए कहा कि विधेयक को पहले आना चाहिए था और अगर यह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले आया होता तो यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं होता। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक बेला में सामाजिक न्याय की दिशा में बढ़ते कदम का साथ देना चाहिए।

भाजपा के भूपेंद्र यादव ने विधेयक के नाम पर राजनीति किए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि उंची जाति के निर्धन लोगों को भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के देवी प्रसाद त्रिपाठी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि देश में ब्राहमणवादी व्यवस्था के परिणामस्वरूप ही आज आरक्षण व्यवस्था लागू करनी पड़ी है और ब्राहमणवादी व्यवस्था को विशेष तरजीही व्यवस्था के जरिये ही ध्वस्त किया जा सकता है। उन्होंने विधेयक का समर्थन कर सामाजिक व्यवस्था को बदलने की मांग की। (एजेंसी)

First Published: Monday, December 17, 2012, 19:21

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