Last Updated: Sunday, September 30, 2012, 12:10
नई दिल्ली : इस्लामाबाद स्थित जिन्ना संस्थान के निदेशक एवं पाकिस्तान के जानेमाने लेखक रजा रुमी का कहना है कि हाल ही में एक कथित इस्लाम विरोधी फिल्म के खिलाफ मचे बवाल की असली वजह समाज में मौजूद गहरी असमानता है जिसका फायदा उठा कर धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले तत्व लोगों में आक्रोश भड़काते हैं।
उन्होंने कहा कि इस तरह की फिल्मों या उत्तेजक लेखों पर होने वाली हिंसक प्रतिक्रिया के तह में लोगों में मौजूद असमानता, कुंठा और गरीबी है, जिसका फायदा उठा कर कुछ लोग हिंसा भड़काने में कामयाब हो जाते हैं।
पाकिस्तान के साप्ताहिक अखबार ‘फ्राइडे टाइम्स’ के समाचार संपादक रजा सहमत (सफदर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट) एवं ‘नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एवं लाइब्रेरी’ की ओर से राजधानी दिल्ली में ‘सआदत हसन मंटो के 100 साल’ पर आयोजित दो दिनों की परिचर्चा में शामिल होने भारत आए हैं।
उन्होंने कहा, धर्म के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वाले तत्व हर समाज में मौजूद होते हैं और लोगों को भड़काने की ताक में लगे रहते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि समाज में हैसियत, वर्ग जैसी कई तरह की असमानताएं मौजूद हैं, इनकी वजह से लोगों के भीतर बहुत कुंठा एवं आक्रोश दबा होता है। कुछ असामाजिक तत्व ऐसे मौकों की ताक में रहते हैं, जब इस कुंठा और आक्रोश को हवा दी जा सके। साथ ही उन्होंने इस बात से भी इनकार नहीं किया कि इस तरह की फिल्में सुनियोजित तरीके से बनाई जाती हैं, ताकि लोगों को भड़काया जा सके। उन्होंने कहा कि इस तरह के वाकयों को रोकने के लिए समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ाए जाने की सख्त जरूरत है।
भारत और पाकिस्तान के लेखकों एवं चिंतकों में समानता के बारे में पूछे गए सवाल पर रजा ने कहा कि दोनों तरफ का बुद्धिजीवी वर्ग एक ही तरह के मुद्दों (सामाजिक सरोकार से जुड़े) को उठा रहा है। रजा ने कहा, दोनों देश के अफसानानिगार समाज में मौजूद विषमताओं पर बेबाकी से लिख रहे हैं और दोनों पक्षों के बीच संपर्क बनाए रखने के लिए यह काफी अच्छा संकेत हैं।
पाकिस्तान के युवा वर्ग के धर्म से जुड़े रवैये के बारे में पूछे गए सवाल पर रजा ने कहा, हमारे कई पुराने एवं सरकारी विश्वविद्यालयों में अभी भी धर्म के नाम पर संकीर्णता मौजूद है, लेकिन नयी पीढ़ी इस पर लगातार सवाल खड़े कर रही है, जो किसी भी समाज के लिए अच्छा संकेत हैं। हालांकि शिक्षा के बेहतर हालात पैदा किए बगैर हम रातोंरात धार्मिक कट्टरता दूर नहीं कर सकते हैं। इस संबंध में अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। मौजूदा समय में पाकिस्तान के साहित्यकारों में मंटो जैसी बेबाकी के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि आज भी कई लोग हैं, जो चुप नहीं बैठे हैं और लगातार विरोध की आवाज बुलंद कर रहे हैं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, September 30, 2012, 12:10