बाबरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई CBI को लताड़

बाबरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई CBI को लताड़

बाबरी मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई CBI को लताड़नई दिल्ली: अयोध्या में भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी और अन्य अभियुक्तों द्वारा विवादित ढांचा गिराने को ‘राष्ट्रीय अपराध’ बताने की केन्द्रीय जांच ब्यूरो की दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कड़ी आपत्ति की। न्यायालय ने जांच एजेन्सी से कहा कि इस मामले में अदालत का फैसला होने तक इस तरह की भाषा का प्रयोग नहीं किया जाये।

न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की खंडपीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ केन्द्रीय जांच ब्यूरो की अपील पर सुनवाई के दौरान जांच एजेन्सी की शब्दावली पर कड़ी आपत्ति की। न्यायाधीशों ने कहा,कृप्या इसे राष्ट्रीय अपराध या राष्ट्रीय महत्व का मामला न कहें। हमें अभी इसका फैसला करना है। हमारे या निचली अदालत द्वारा किसी भी पक्ष में फैसला सुनाये जाने तक आप इस तक के बयान नहीं दे सकते हैं।

न्यायाधीशों ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब केन्द्रीय जांच ब्यूरो की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी पी राव ने कहा कि भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद के नेता ‘राष्ट्रीय साजिश’ में शामिल थे जो रथ यात्रा से परिलक्षित होती है और यह ‘राष्ट्रीय अपराध’’ का मामला है।

पी पी राव विशेष अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिका पर बहस कर रहे थे। इन फैसलों में भाजपा नेता अडवाणी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ साजिश के आरोप हटा दिये गये थे।

इन नेताओं के अलावा, सतीश प्रधान, सी आर बंस, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, विष्णु हरि डालमिया, महंत अवैद्यनाथ, आर वी वेदांती, परम हंस राम चंद्र दास, जगदीश मुनि महाराज, बी एल शर्मा, नृत्य गोपाल दास, धरम दास, सतीश नागर और मोरेश्वर सावे के खिलाफ भी साजिश का आरोप हटा दिया गया था।

इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने विशेष अदालत में सुनवाई में विलंब और दो अदालतों के फैसलों को चुनौती देने में हुयी देरी के बारे में भी केन्द्रीय जांच ब्यूरो से सफाई मांगी। न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘आप कहते हैं कि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है। तो क्या आप कह सकते हैं कि अनुवाद (अदालती रिकार्ड) में कई दिन और मामला दाखिल करने में तीन महीने लगते हैं।’’ इस पर जांच एजेन्सी ने नया हलफनामा दाखिल कर स्थिति स्पष्ट करने की अनुमति देने का अनुरोध किया न्यायालय ने उसे इसकी इजाजत नहीं दी। न्यायालय ने कहा कि अब कोई नया हलफनामा या सामग्री पेश करने की अनुमति नहीं होगी।

लेकिन न्यायालय ने जांच ब्यूरो को वे दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दे दी जिनका हवाला विशेष अदालत और उच्च न्यायालय ने अपने फैसलों में दिया है।

न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई 13 फरवरी के लिये स्थगित कर दी। इससे पहले, पी पी राव ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उन्हें इस मामले की फाइल के अवलोकन के लिये कुछ समय दिया जाये।

इससे पहले, छह दिसंबर, 2012 को शीर्ष अदालत ने रायबरेली की अदालत से कहा था कि अयोध्या में आडवाणी और अन्य आरोपियों के खिलाफ इस मामले की सुनवाई तेजी से की जाये।

जांच एजेन्सी ने उच्च न्यायालय के 21 मई, 2010 के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने इन नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोप हटाने के विशेष अदालत के निर्णय को सही ठहराया था। लेकिन उसने अन्य आरोपों में आडवाणी और दूसरे आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी थी।

उच्च न्यायालय ने मई, 2010 के फैसले में कहा था कि इन नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश के आरोप हटाने के विशेष अदालत के चार मई, 2001 के फैसले के खिलाफ जांच एजेन्सी की अपील में कोई दम नहीं है।
विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना के संबंध में दो मामले हैं। इनमें से एक मामला आडवाणी और उन लोगों के खिलाफ है जो दिसंबर, 1992 में विवादित ढांचा गिराये जाने के समय अयोध्या में राम कथा कुंज में मंच पर थे जबकि दूसरा मामला उन लाखों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ है जो विवादित ढांचे के अंदर और आसपास थे। केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने आडवाणी और 20 अन्य आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए, (विभिन्न वर्गो में कटुता पैदा करने) धारा 153बी ( राष्ट्रीय एकता को खतरा पैदा करने वाली हरकत करने) और धारा 505 (सार्वजनिक शांति भंग करने के इरादे से मिथ्या प्रचार करने, आक्षेप लगाने और अफवाह फैलाने) के आरोपों में आरोप पत्र दाखिल किया था।

जांच एजेन्सी ने बाद में धारा 120-बी के तहत आपराधिक साजिश रचने का भी आरोप लगाया था जिसे विशेष अदालत और उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया था।

इस मामले में शिव सेना सुप्रीमो बाल ठाकरे का नाम भी शामिल था लेकिन उनके निधन के कारण उसे हटा दिया गया।

विशेष अदालत के फैसले को सही ठहराते हुये उच्च न्यायालय ने कहा था कि जांच एजेन्सी ने रायबरेली में या पुनरीक्षण याचिका में ही किसी भी मौके पर इन नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश होने का तर्क नहीं दिया था। (एजेंसी)

First Published: Thursday, February 7, 2013, 14:16

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