Last Updated: Monday, September 2, 2013, 18:13

नई दिल्ली : राज्यसभा में सोमवार को भाजपा सहित विपक्षी दलों ने सरकार के महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा विधेयक को चुनावी हथकंडा और ‘पुरानी बोतल में नई शराब’ करार देते हुए कहा कि इस मामले में राज्यों की राय मानी जानी चाहिए थी जबकि सत्ता पक्ष ने इसे ऐतिहासिक पहल बताते हुए कहा कि देश को खाद्य सुरक्षा की दिशा में ले जाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने आरोप लगाया कि खाद्य सुरक्षा के नाम पर केंद्र ने विभिन्न मौजूदा योजनाओं की ‘रिपैकेजिंग’ कर इससे लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या वास्तविक तौर पर कम कर दी है। उन्होंने सवाल किया कि प्रस्तावित विधेयक कानून बन जाने के बाद छत्तीसगढ़ जैसे वे राज्य क्या करेंगे जहां इससे बेहतर योजनाएं पहले से ही लागू हैं।
उच्च सदन में खाद्य सुरक्षा विधेयक और इस संबंध में पांच जुलाई को सरकार द्वारा लाए गए एक अध्यादेश को निरस्त करने संबंधी संकल्प पर एक साथ हुयी चर्चा में भाग लेते जेटली ने आरोप लगाया कि अध्यादेश राजनीतिक लाभ हासिल करने के उद्देश्य से लाया गया।
खाद्य सुरक्षा विधेयक का समर्थन करते हुए उन्होंने अध्यादेश जारी करने के समय पर सवालिया निशान लगाया और कहा कि यह जल्दबाजी में जारी किया गया जबकि संसद का सत्र एक महीने में शुरू होने जा रहा था।
जेटली ने कहा कि पीडीएस, आईसीडीएस और मध्याहन भोजन जैसी विभिन्न खाद्य योजनाओं में मुहैया सब्सिडी।,24,844 करोड़ रुपए है जबकि इस विधेयक में ।,25,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी की बात की गयी है।
उन्होंने कहा कि पीडीएस योजनाओं में जहां पात्रता की बात की गयी है, इस विधेयक में उन्हें खाद्यान्न का अधिकार मुहैया कराया गया है।
इसके अलावा कोई अन्य लाभ नहीं है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में इससे बेहतर योजनाएं हैं और केंद्र को विशाल हृदय का परिचय देते हुए उन राज्यों को उनकी योजनाएं जारी रखने की अनुमति देनी चाहिए। इस क्रम में उन्होंने छत्तीसगढ़ का जिक्र किया।
जेटली ने कहा कि योजना के संबंध में मुख्यमंत्रियों ने सुझाव दिए हैं और केंद्र को लिखा है। उन्होंने कहा कि केंद्र को लचीलापन दिखाते हुए उनकी राय पर अमल करना चाहिए था।
कांग्रेस के नरेन्द्र बुढानिया ने इस आरोप से इंकार किया कि यह विधेयक जल्दबाजी में लाया गया है। उन्होंने कहा कि किसी अन्य देश में इस तरह की व्यवस्था नहीं की गयी है। हमारे देश में इतना उत्पादन होता है कि यह सुनिश्चित हो सकता है कि देश में कोई व्यक्ति भूखा नहीं रहे।
उन्होंने कहा कि संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2009 के चुनावी घोषणा पत्र में खाद्य सुरक्षा के अपने वायदे को पूरा करने की दिशा में मजबूत कदम उठाया है।बुढ़ानिया ने कहा कि देश में कुपोषण के आंकड़े को देखते हुए प्रस्तावित कानून कुपोषण से लड़ने की दिशा में काफी मदद करेगा। उन्होंने विधेयक के ध्येय की सफलता के लिए वितरण व्यवस्था में सुधार करने और लीकेज को दुरस्त करने के लिए राज्य सरकारों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया।
उन्होंने इस प्रस्तावित कानून के जारी रहने के बारे में कुछ सदस्यों द्वारा उठायी गई आशंका के संदर्भ में कहा कि संप्रग सरकार ने दूसरे हरित क्रांति का नारा दिया और इन्हीं प्रयासों के तहत पूर्वी राज्यों में पैदावार बढ़ी है जो इस कार्यक्रम के जारी रहने के बारे में हमें आश्वस्त करता है।
भाजपा के ही एम वेंकैया नायडू ने आरोप लगाया कि यह जनता को लुभाने के लिए लाया गया विधेयक है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की ओर से इसे पासा पलटने वाला (गेम चेंजर) विधेयक बताया जा रहा है। लेकिन आम लोगों का पार्टी और संप्रग पर से भरोसा समाप्त हो गया है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने लोगों के सामने कई वायदे किए लेकिन उन्हें पूरा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि मनरेगा के बारे में बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं लेकिन सच्चाई वैसी नहीं नहीं है।
नायडू ने कहा कि अगर किसानों की स्थिति में बदलाव नहीं किया गया तो खाद्य सुरक्षा नहीं सुनिश्चित की जा सकती। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की समस्याओं को दूर करने के प्रति गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा कि आयात के जरिए खाद्य सुरक्षा नहीं हासिल की जा सकती। (एजेंसी)
First Published: Monday, September 2, 2013, 09:57