Last Updated: Tuesday, May 15, 2012, 14:28
नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने देश के भावी सेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बिक्रम सिंह को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया था। इसके साथ ही केंद्र ने कैबिनेट की नियुक्ति समिति को भी गलत जानकारी मुहैया करवाई थी। इस समिति द्वारा ही जनरल सिंह की नियुक्ति को हरी झंडी दी जानी थी। यह दावा एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में किया गया है। मामला दरअसल साल 2008 में अफ्रीकी देश कांगों में गए भारतीय शांति सैनिकों द्वारा किए गए यौन दुर्व्यवहार से जुड़ा है।
सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका द्वारा कांगो यौन दुर्व्यवहार मामले को लेकर जनरल सिंह की सेना प्रमुख के तौर पर दावेदारी को चुनौती दी गई थी। केंद्र सरकार ने जनरल सिंह का बचाव करते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि सिंह उस समय संयुक्त राष्ट्र के पेरोल पर डिप्टी फोर्स कमांडर तथा इंटरनेशल सिविल सर्वेट थे। इस वजह से उन्हें इस मामले के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जनरल सिंह पर कांगों यौन दुर्व्यवहार, कश्मीर में फर्जी मुठभेड़ और उनकी पुत्रवधू के पाकिस्तानी नागरिक होने के आरोप लगते रहे हैं। जब इस मामले ने तूल पकड़ा था, तब सरकार ने ब्रिगेडियर इंदरजीत नारायण पर यौन दुर्व्यवहार और अनुशासनहीनता का ठीकरा फोड़ा था। उस वक्त ब्रिगेडियर नारायण मातहत 301 इन्फेंट्री ब्रिगेड में जनरल सिंह के नीचे कार्य कर रहे थे।
वहीं, संयुक्त राष्ट्र की इंटरनल ओवरसाइट सर्विस की जांच रिपोर्ट में कुछ और ही मामला है। ओआईओएस को कांगो में भारतीय शांति सैनिकों द्वारा किए गए यौन दुर्व्यवहार की शिकायतें मिली थी। अखबार ने दस्तावेजों के आधार पर दावा किया कि केंद्र सरकार ने इस मामले में शीर्ष कोर्ट को गुमराह किया है। दस्तावेजों के अनुसार यौन दुर्व्यवहार में फंसी सैन्य टुकड़ी पर सीधा नियंत्रण जनरल बिक्रम सिंह के हाथ में था। सिंह उस वक्त न केवल डिप्टी फोर्स कमांडर थे, बल्कि ईस्टर्न डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) भी थे। नार्थ किवू ब्रिगेड (यौन दुर्व्यवहार की आरोपी) इसी ईस्टर्न डिवीजन के तहत आती थी। केंद्र सरकार ने जनरल सिंह की दोहरी भूमिका वाले इसी तथ्य को सुप्रीमकोर्ट से छुपाया था।
(एजेंसी)
First Published: Tuesday, May 15, 2012, 19:58