Last Updated: Monday, September 2, 2013, 12:42
नई दिल्ली : भारत भाषा के लिहाज से यूरोप के मुकाबले चार गुना अधिक संपन्न है। भारतीय जहां करीब 850 भाषाएं बोलते हैं, वहीं यूरोपीय अपनी बात मात्र 250 भाषाओं में रख पाते हैं। यह बात जाने-माने भाषा-विज्ञानी और स्वतंत्र भारत में अखिल भारतीय स्तर पर भाषाओं का पहला सर्वेक्षण करने वाले गणेश एन देवी ने कही।
भारतीय भाषाओं के लोक सर्वेक्षण (पीएलएसआई) के अध्यक्ष देवी ने कहा कि इंग्लैंड में चार या पांच से अधिक भाषाएं नहीं बोली जातीं। इनमें से मुख्य तौर पर सिर्फ दो-अंग्रेजी और वेल्श- कार्य-व्यवहार में है जबकि असम जैसा राज्य जो आकार में लगभग ब्रिटेन के बराबर है वहां 52 भाषाएं बोली जाती हैं।
देवी ने पेरिस मुख्यालय वाले संस्थान यूनेस्को, जो कई भाषाओं के संवर्धन के लिए प्रयास करता है, वह विचार विमर्श के लिए सिर्फ पांच भाषाओं का इस्तेमाल करता है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर यहां भारतीय अदालतों और कार्यालयों में 22 भाषाओं में काम-काज होता है। ब्रिटिश शासनकाल में हुए भारतीय भाषाओं के पहले सर्वेक्षण के बाद करीब 100 साल बाद हुए सर्वेक्षण के संबंध में उन्होंने कहा कि भारत में सैंकड़ों भाषाएं हैं।
इन संख्या करीब 850 हो सकती है जिनमें से हम 780 भाषाओं का अध्ययन कर सके। यदि 1961 की जनगणना को आधार मानें तो पिछले 50 साल में करीब 250 भाषाएं लुप्त हुईं। ब्रिटिश शासनकाल में आइरिश भाषा-विज्ञानी और भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने यह सर्वेक्षण किया था। वडोदरा स्थित भाषा रिसर्च एंड पब्लिकेशन के तत्वावधान में हुए इस सर्वेक्षण को पांच सितंबर को यहां राष्ट्र को समर्पित किया जाएगा।
सर्वेक्षण के महाराष्ट्र खंड के प्रकाशक और स्तंभकार अरण जाखड़े ने कहा कि हमने महाराष्ट्र की जिन 60 भाषाओं का अध्ययन किया है वे मेरे लिए 60 ध्वनियों के समान है जिनके जरिए मेरे राज्य की पहचान होनी चाहिए। (एजेंसी)
First Published: Monday, September 2, 2013, 12:42