भूख से बड़ा कोई अभिशाप नहीं : राष्ट्रपति

भूख से बड़ा कोई अभिशाप नहीं : राष्ट्रपति

भूख से बड़ा कोई अभिशाप नहीं : राष्ट्रपतिज़ी न्यूज ब्यूरो/एजेंसी
नई दिल्ली : भारत के नवनियुक्त राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज कहा कि गरीबी को दूर करना देश की सबसे बड़ी जरूरत है। देश के 13वें राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के तुरंत बाद अपने पहले भाषण में महामहिम ने कहा कि आधुनिक भारत के शब्दकोश में गरीबी जैसे शब्द की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। भारत के विकास में गरीबों की हिस्सेदारी की वकालत करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है।

प्रणब ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में भारत के नए राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद कहा कि गरीबी के अभिशाप को खत्म करना है और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करने हैं जिससे वे हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा जो सबसे गरीब हैं ताकि गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोष से मिट जाए। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा विकास वास्तविक लगे इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है।

उन्होंने कहा, ‘अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम चौथे विश्व युद्ध के बीच में हैं। तीसरा विश्वयुद्ध शीतयुद्ध था परंतु 1990 के दशक की शुरुआत में जब यह युद्ध समाप्त हुआ उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में बहुत गर्म माहौल था। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा विश्व युद्ध है और यह विश्वयुद्ध इसलिए है क्योंकि यह बुराई अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकती है।’ प्रणब ने कहा, ‘दूसरे देशों को इसकी (आतंकवाद की) जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा जबकि भारत को इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है।’ प्रणब ने कहा कि भारत के लोगों ने घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी।'

प्रणब ने कहा, ‘मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रन्थों में समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभों पर खड़ा किया गया है। हमारी चुनौती है ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुंचाकर इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना।’ भ्रष्टाचार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है। भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते। भाषण का अंत उन्होंने स्वामी विवेकानंद के सुप्रसिद्ध रूपक से किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत का उदय होगा। शरीर की ताकत से नहीं बल्कि मन की ताकत से। विध्वंस के ध्वज से नहीं बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। ‘अच्छाई की सारी शक्तियों को इकटठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है.. हरा नीला अथवा लाल बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की प्रखर चमक पैदा करें जो प्यार का रंग है।’

First Published: Wednesday, July 25, 2012, 13:13

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