मनरेगा की कमियों को दूर करने का पीएम का निर्देश

मनरेगा की कमियों को दूर करने का पीएम का निर्देश

मनरेगा की कमियों को दूर करने का पीएम का निर्देशनई दिल्ली : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के समवर्ती मूल्यांकन की स्थिति ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री ने योजना आयोग को त्रुटियों और ‘कमियों’ को दूर करने का निर्देश दिया।

प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि जिस तरह से यह योजना कार्य कर रही है वह उससे ‘पूर्ण रूप से संतुष्ट’ नहीं हैं। उन्होंने सरकार की इस प्रमुख योजना के तहत कार्यरत श्रमिकों को विलंबित भुगतान जैसी समस्याएं गिनाते हुए कहा कि इनका जल्द समाधान होना चाहिए।

सिंह ने संप्रग की प्रमुख योजना मनरेगा के अनुसंधान अध्ययन के संकलन ‘मनरेगा समीक्षा’ को जारी करने के अवसर पर दिये अपने संबोधन में कहा, महात्मा गांधी नरेगा के आंकड़ों की कहानी उसकी सफलता बयान करती है। समग्रता के मामले में यह एक सफल योजना है। हाल में किसी अन्य कल्याणकारी योजना ने लोगों का ध्यान उतना आकषिर्त नहीं किया जितना कि मनरेगा ने किया है।’

उन्होंने कहा, लेकिन: आंकड़े पूरी सच्चाई नहीं बताते। ‘मनरेगा समीक्षा’ उस मनरेगा योजना के बारे में किये गए अनुसंधान अध्ययनों का एक संग्रह है जिसके तहत 1200 करोड़ लोगों को वेतन का भुगतान करने के लिए 110000 करोड़ रुपये व्यय किये गए हैं।

सिंह ने कहा कि उन्हें (ग्रामीण विकास मंत्री) जयराम रमेश से यह सुनकर आश्चर्य होता है कि समवर्ती लेखापरीक्षण प्रक्रियाएं अच्छी हालत में नहीं हैं। उन्होंने रमेश और योजना आयोग के सदस्य मिहिर शाह की ओर से रेखांकित की गई कमियों का उल्लेख किया जिन्हें दूर किये जाने की आवश्यकता है।

समवर्ती मूल्यांकन इस योजना को लागू किये जाने के प्रभावों का आकलन है जो वाषिर्क या अन्य आवधिक लेखा परीक्षा के लिए इंतजार किये बिना किया गया है। उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता कि यदि वे सुस्त हैं, तो क्यों सुस्त हैं लेकिन मैं (योजना आयोग के उपाध्यक्ष) मोंटेक सिंह आहलुवालिया से अनुरोध करूंगा कि वह इस कमी को दूर करने में भी अपना दिमाग लगायें।’’ इस कार्यक्रम में रमेश और आहलुवालिया दोनों उपस्थित थे।

प्रधानमंत्री ने स्मरण करते हुए कहा कि जब वह योजना आयोग में थे तब ग्रामीण विकास के कई कार्यक्रमों का समवर्ती मूल्यांकन कार्यक्रम शुरू किया गया था। उन्होंने मनरेगा योजना में कार्यरत श्रमिकों को भुगतान में होने वाले विलंब के मुद्दे का उल्लेख करते हुए कहा, हम जल्द ही भुगतान में विलंब की समस्या को दूर कर लेंगे, मेरा मानना है कि निकट भविष्य में बेहतर परिणाम सामने आएंगे। ‘समीक्षा’ में मनरेगा को लागू करने में कोष के गबन जैसे मुद्दों को लेकर रमेश की स्वीकारोक्ति है।

उन्होंने लिखा है, यद्यपि मनरेगा की उपलब्धियां शानदार रहीं हैं लेकिन इसके कार्यान्वयन के संबंध में कुछ मुद्दे रहे हैं जिनकी पहचान करके उनका सार्थक रूप से समाधान किये जाने की जरूरत है मनरेगा में राशि एवं संसाधनों के गबन और गलत इस्तेमाल को लेकर सार्वजनिक चिंता रही है। सिंह ने रमेश की ओर से मनरेगा में किये गए इस उल्लेख का हवाला दिया कि मनरेगा विश्व में ‘सबसे बड़ा एवं महत्वाकांक्षी’ सामाजिक सुरक्षा एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रम है।

सिंह ने कहा कि योजना के तहत प्रदत्त सुरक्षातंत्र ने ग्रामीण भारत को लगातार प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद प्रदान की है। उन्होंने कहा, बढ़े हुए कृषि उत्पादन, निर्माण क्षेत्र की ओर से श्रम की मांग और मनरेगा के प्रभाव के संयुक्त असर ने खेतिहर मजदूरी के लिए बाजार में कसावट पैदा की है और वास्तविक वेतन में सतत वृद्धि हुई है। किसान कई बार इस बारे में शिकायत करते हैं। लेकिन श्रम की बढ़ती मांग ही भूमिहीन लोगों के लिए उनके जीवनस्तर में सुधार का एक तरीका है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पंचायती राज संस्थानों को योजना के तहत उन्हें मिली केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने कामकाज प्रभावी तरीके से संचालित होने के लिहाज से पंचायतों की मदद के लिए संसाधन मुहैया कराने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, यदि ये स्थानीय निकाय चुनौती के सामने डटे रह सकते हैं तो मनरेगा बहुत अच्छी तरह से भारत के ग्रामीण पुनर्निर्माण के लिहाज से सफलता की चाबी हो सकती है। सिंह ने कहा कि क्रियान्वयन एजेंसी को स्थानीय जरूरतों के मुताबिक अभिनव तथा प्रतिक्रियाशील बनाने के लिए नीति निर्माताओं के सामने और भी अधिक लचीली एवं समुदाय आधारित पहल तैयार करना एक बड़ी चुनौती है।

लैंगिक समानता के मुद्दे का उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा कि एक अध्ययन के अनुसार मनरेगा के कारण ग्रामीण महिलाओं के बीच एक मौन क्रांति पनप रही है। उन्होंने कहा, वेतन की विषमताएं दूर हो रहीं हैं और महिलाएं अधिक संख्या में आगे बढ़कर काम कर रहीं हैं और बैंकों, डाकघरों तथा सरकारी अधिकारियों से संवाद स्थापित कर रहीं हैं।

इससे उनके आत्मविश्वास में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है और घर के आर्थिक मामलों में उनकी भूमिका बढ़ी है। इस मौके पर रमेश ने कहा कि ऑडिट और बाद में पड़ताल होती हैं लेकिन यह समवर्ती ऑडिट का विकल्प नहीं हो सकता। उन्होंने उम्मीद जताई कि इसके लिए एक तंत्र विकसित करने के लिए योजना आयोग के सामने रखे गये उनके प्रस्ताव को मंजूरी मिलेगी। रमेश ने कहा कि योजना आयोग के तहत स्थापित एक स्वतंत्र मूल्यांकन कार्यालय द्वारा साथ साथ ऑडिट किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी में निवेश के माध्यम से पंचायती राज संस्थानों की क्षमता बढ़ाने के प्रयास में उनका मंत्रालय मनरेगा की निधि से कुछ धन पंचायती राज मंत्रालय को देने के लिए तैयार है। रमेश ने कहा कि एक मंत्रालय से दूसरे में धन स्थानांतरित करने जैसी ‘अफसरशाही संबंधी दिक्कतों’ को सुलझाया जा सकता है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, July 15, 2012, 00:24

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